क्षितिज के मस्तक पर सुनहरा सा ये बिंदु
नभ ललाट पर अरूणिमा का जैसे इक सिंधु
रात के दामन से होले से सरकता आरव
भौर की आहट पर चिड़ियों का कोलाहल
सोर किरणों की धरा पर जो हुई दस्तक
प्रभु के दर्शन से हुआ सहसा मैं नतमस्तक
नभ ललाट पर अरूणिमा का जैसे इक सिंधु
रात के दामन से होले से सरकता आरव
भौर की आहट पर चिड़ियों का कोलाहल
सोर किरणों की धरा पर जो हुई दस्तक
प्रभु के दर्शन से हुआ सहसा मैं नतमस्तक