Saturday, February 13, 2016

क्षितिज के मस्तक पर सुनहरा सा ये बिंदु
नभ ललाट पर अरूणिमा का जैसे इक सिंधु
रात के दामन से होले से सरकता आरव
भौर की आहट पर चिड़ियों का कोलाहल
सोर किरणों की धरा पर जो हुई दस्तक
प्रभु के दर्शन से हुआ सहसा मैं नतमस्तक