Friday, August 24, 2007

चल ऐ इन्सान समां जाएँ आज

चल ऐ इन्सान समां जाएँ आज,
दे दे बाहें अपनी भर बाहों में मेरी,
आलिंगन कर डूब जायें आज हम कुछ ऐसे,
आज मैं तुझमे और तू डूब जाये मुझमें,

आलिंगन हो दुनिया का अनोखा सम्पूर्ण,
दुनिया भी रह जाये देखती नि:शब्द,
चल आज कर ले आलिंगन कुछ ऐसा,
रच दें परिभाषा आलिंगन की एक नयी,

चाह्चहआहटों से भर जाये वन उपवन,
चिडियों का हो छाया घनेरा कुछ ऐसा,
संगीत से उनके गूँज उठे कुदरत का हर एक कोना
कोयल की कूक से खिल नाच उठे जीव सारे,

खिल जाये पत्ता पत्ता थाम कली को भी डाली,
नाच उठे हर एक पशु वन में हो मदमस्त,
चल पड़े बयार भी हवा की कुछ ऐसे,
वातावरण भी मुस्कुरा उठे खिलखिला कुछ आज,

चल आ कर लें आज हम आलिंगन कुछ ऐसे,
नदियों में भी आ जाये कुछ ऐसे बल,
लहरा कर चल पड़े जैसे एक मदमस्त भंवर,
पुष्पों के नशीले अधरों पर रख अपने वो अधर,

लहराती बलखाती क़मर हो जैसे सुंदरी,
जाती हो पनघट पर लिए अपनी मटकी,
बहते हुए जल में भी आ जाये ऐसी एक खुमारी,
बहाव में हो एक नृत्य का आलिंगन करती वो प्यारी,

चल कर लें आलिंगन हम इंसानियत का आज,
दबोच आज अपनी बाहों में कुछऐसे,
लग जायें हम गले उसके खींच सीने में अपने,
समा लेने दे आज मुझे इंसानियत को खुद में,

चल आ कर ले आलिंगन आज कुछ ऐसे,
आ जाये खुदा भी धरती पर देखने ये मंज़र,
संगम इंसानियत का मनुष्य में समाता,
आलिंगन कुछ ऐसा खिल जायं जिसमें डूबें हम सारे ॥

निद्रा

एक अलसाये से नींद से
उठने के कोशिश करता हुआ,
अंगडाई लेते हुए,
आने को तैयार,
झाँका जो जाकर बाहर,
खड़ा है एक नया वर्ष तैयार,
है कितना आतुर,
सोया था जो वर्षों से बेकार,
आया है उसका उठने का मौसम इस बार,
बाहें पसारता
आंखें मिल्मिलाता,
अंगडाई लेता,
भगाता अपनी निद्रा को,
कहता उससे ये बार बार,
गुजारा वक़्त बहुत है तेरे साथ,
अब जा तू किसी और के पास,
दुनिया करती इन्तेज़ार मेरा,
जाना है मुझको अब उनके पास,
देख ए मेरी प्रियतम निद्रा,
पूरा विश्वा है कैसा तैयार,
पसारे बाहें अपने कई,
लिए फूलो का हार लिए,
कैसे देखता राह मेरी,
स्वागत करने को तैयार,
बोल तू कैसे तोडूं दिल में इनका,
जा तू अब दूर मुझसे,
जान है मुझे अब इनके पास,
देना है मुझे वो सब कुछ,
देखते ये राह जिसकी बरसों से,
कर ना सका कुछ पहले इसके,
प्रेम में था सोया तेरे में साथ,
जाता हूँ में अब इनसे मिलने,
देख कैसे देख रहे ये मेरी राह,
ना रोक तू मुझे अब
करता हूँ में तुझसे प्यार,
पर होगा अब जाना मुझे
इन प्यारे लोगों के पास!!!

ये अल्फाज़

सुबह के ये सुनहरी किरण,
एक पैगाम ले कर है आयी आज,
सीने से लग गया में उनके,
हो गया मदहोश में आज,
छू कर उन अधरों को,
जैसे बितायी हो लंबी वो रात,
किसी मधुशाला के बीच,
मदिरा तो दे ना पायी नशा वो,
पिलाया जो तुमने अधरों के जाम,
प्याले में उड़ेल कर,
शब्दों की मदिरा को,
रख दिया जो अधरों पर तुने,
नशा हुआ क्या है आज हमको,
लगाया जो सीने से आज,
दुनिया ने कहा है जो,
सर आंखों पर रखा है वो,
इजाज़त जो दीं है उसने आज,
कर ली मोहब्बत अल्फाजों से तुम में,
अल्फाजों का है लम्बा सलाम,
मोहब्बत की है हमने अल्फाजों से,
अल्फाजों का है ये लम्बा सफ़र,
ये अल्फाज़ जो है हम दोनो के बीच,
मोहब्बत है हमको इनसे इन्तेहा,
देते ये साथ मेरा,
जिन्दगी की हर राह पर,
बेरहम नही कोई इस जहाँ में,
प्यारे है लोग सारे यहाँ,
जन्मों में क्या रखा है,
आत्माओं का मिलान हो गया जो आज,
सदिया गुजरी पहले कितनी,
सदिया चाहे गुजरे जितनी,
आत्माओं का मिलान हो गया जो आज,
सदियों से सदियों तक,
मोहब्बत नही मरती है आज.

चलते ही जाना है

अनजान राहों पर चलते जाना,
समय के टिक टिक के साथ,
घुमते काँटों के बीच,
चाहतों के कश्ती पर हो कर सवार
ना बुझती हुई चाहतों के किश्ती को खेते खेते,
धीरे धीरे चलते हे जाना।
प्रतीक्षा में उस किनारे के,
बुलाता है जो हमे डरकर,
खुली बाँहों में भर लेने को एक संसार,
निगाहों में डूबने का इंतज़ार,
भीगी भीगी पलकों के बीच,
मोतियों का बह जाना,
चाहता है दिल ये कभी कभी,
उन अनमोल मोतियों को संजोना,
कीमत है जिनकी अनमोल,
चले जा रहे हैं हम सभी,
बहे जा रहे हैं हम सभी,
एक अंजन राह पर,
इन अनजानी मंज़िल के ओर,
समय के साथ,
रूक कर एक पल को,
सुस्ताना कभी बीच राह पर,
देखना पलट कर पीछे
छूट गए है कहीँ ख्वाब सब,
इंतज़ार करते किसका तुम,
सब है तुम्हारी बाँहों में वहीँ,
रूक कर दो पल को जो देखो भीतर,
पयोगे संसार एक हँसी उसके बीच,
फैला कर बाँहों को,
भर लो भेतर अपने,
रूक कर सोचो कभी दो पल,
चलना है जिन्दगी के राह पर,
भर कर सब कुछ अपने भीतर,
चलते ही जाना है,
यही तो है जिन्दगी का नाम.

चाहत

हर पल तुझे ख्वाबों मे देखा,
अब हकीकत मे पाने कि चाहत है.

पास आकर तुम्हारे,
कुछ लम्हे चुराने कि चाहत है.

लगा के अपने सीने से तुम्हे,
यह जिन्दगी जीने कि चाहत है.

लेकर तुम्हे अपनी बाँहों मे,
यह जहाँ बदलने कि चाहत है.

ना जाने कितने आंसू बहे तेरे इंतज़ार मे,
पर अब तेरे संग मुस्कुराने कि चाहत है.

अपनी हर एक ख़ुशी तेरे नाम कर,
तेरे सारे गम अपनाने कि चाहत है.

छुप-छुप के तुझे देखा तो बहुत मैंने,
अब तेरी नजरो से नज़र मिलाने कि चाहत है.

तुम तो बस चुके हो इस दिल मे,
पर अब तेरे दिल मे धड़कने कि चाहत है.

मिटाकर फासले सभी,
दिल से दिल मिलाने कि चाहत है.

बहुत कुछ कह गया यह दिल मेरा,
बस अब कुछ तुमसे सुनने कि चाहत है.

दोस्त

कुछ दोस्त ऐसे होते हैं ,
जो दिल मैं बस जाते हैं.
जो जिन्दगी कि राहों मैं ,
हम से बिछड़ जाते हैं।

कुछ दोस्त ऐसे होते हैं ,
जो रात मैं याद आते हैं.
और रातों कि तन्हाई मे रुलाते हैं।

कुछ दोस्त ऐसे होते हैं ,
जो फूलों कि तरह होते हैं.
जो खुद तो चले जाते हैं,
पेर अपनी महक छोड़ जाते हैं।

कुछ दोस्त ऐसे होते हैं ,
जो जिन्दगी तोड़ देते हैं.
पर जिन्दगी कि राहों मे तनहा छोड़ देते हैं.

कुछ दोस्त ऐसे होते हैं,
जो चांद कि तरह होते हैं ,
जो दाग तो बहुत रखते हैं
पर खुबसुरत नज़र आते हैं.

कुछ दोस्त ऐसे होते हैं ,
जो पत्थर का दिल रखते हैं ,
जो शीशा-ए-दिल तोड़ जाते है,,,,,,,,,,,

तुम...इन सुब में अनमोल हो..

जो बीत गयी सो बात गयी

जीवन मैं एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया

अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे,
जो छूट गए फिर कहां मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गयी सो बात गयी

जीवन मैं वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुवन कि छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाई कितनी बल्ल्रियां
जो मुरझायी वोह फिर कहां खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गयी सो बात गयी

जीवन मैं मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय के आंगन को देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिटटी मैं मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गयी सो बात गयी

मृदु मिटटी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आये हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट है
मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
व कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गयी सो बात गयी।


कविकार,
हरिवंश राय बच्चन

कौन

यह क्या लहर उठी,
हमें साहिल बाना दिया,
हमको भी तुमने प्यार के,
काबिल बाना दिया।

ना खंजर था इन हाथों में,
ना दुश्मनी थी कोई,
फिर भी ना जाने क्यों हमें,
आपने कातिल बना दिया।

थी मंजिल भी हमारे सामने,
और पांव भी थे थके हुए,
क्यों उसने मेरी रह को,
और मुश्किल बाना दिया।

ये किस के संग ने ,
तराशा है हमें,
कि पत्थर के सीने में भी,
जिसने दिल लगा लिया।