Sunday, September 30, 2007

Never cry for any relation in Life
because for the one whom you cry
does not deserve you tears
and the one who deserves
will never let you cry......

Treat everyone with politeness
even those who are rude to you,
not because they are not nice
but because you are nice.....

Never search you happiness in others
which will make you feel alone,
rather search it in yourself
you will feel happy even
if you are left alone......

Always have a positive attitude
There is something positive in every person
Even a stopped watch is right twice a day.......

Happiness always looks small
when we hold it in our hands.
but when we learn to share it,
we realize how big and precious it is....
किसी ने पूछा ...........
दोस्त क्या है ?
मैने काँटो पर चल कर बता दिया
कितना प्यार करोगे दोस्त को?
मैने पूरा आसमान दिखा दिया
कैसे रखोगे दोस्त को?
मैने हल्के से फूलों को सेहला दिया
किसी की नज़र लग गयी तो ?
मैने पल्को में उस को चुपा लिया
जान से भी प्यारा दोस्त किसे केहते हो ?
मैने आपका नाम बता दिया ...................
मैं दुखी हूं यह कहते हैं खुशी की बात है।
अब अंधेरों की जबां पर रोशनी की बात है।
मुद्दतों पहले जुदा हम अपनी मर्जी से हुए
लग रहा है दिल को यूं जैसे अभी की बात है।
हमने जब भी दास्ताने शौक छेड़ी दोस्तों
हर किसी को लगा जैसे उसी की बात है॥
खामोशी ने किस लिए आवाज का पीछा किया
अहले दुनिया तुम ना समझोगे ये ऐसी बात है।
शहर में एक शख्स ऐसा है जो सच के साथ है।
ध्यान से क्यूं सुन रहे हो दिल्लगी की बात है॥
मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है
हकीकत जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है
न चिडि़या की कमाई है न कारोबार है कोई
वो केवल हौसले से आबोदाना ढूंढ लेती है
समझ पाई न दुनिया मेरी
अब तकजो सूली पर भी हंसना मुस्कुराना ढूंढ लेती है
उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती है
जुनूं मंजिल का, राहों में बचाता है
भटकने सेमेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ लेती है ।
बहुत दिन हुए वो तूफ़ान नही आया,
उस हसीं दोस्त का कोई पैगाम नही आया,
सोचा में ही कलाम लिख देता हूँ,
उसे अपना हाल- ए- दिल तमाम लिख देता हूँ,
ज़माना हुआ मुस्कुराए हुए,
आपका हाल सुने...
अपना हाल सुनाए हुए,
आज आपकी याद आई तो सोचा आवाज़ दे दूं,
अपने दोस्त की सलामती की कुछ ख़बर तो ले ल...

जीवन

दुनिया के इस रंगमंच पर,
खेलते खेल हम सारे,
कभी हँसते हुए मर जाते,
कभी रोते हुए हंस जाते,

कभी भर गुलाब को हांथो में,
उसकी भीनी सुगंध में डूब जाते,
कभी रख क़दम समंदर पर,
अहिस्ते से उस पर उतरा जाते,

जीवन के इन रंगो में,
पल पल हम चलते जाते,
हर एक पल में जीं लेते,
हर एक पल में मर जाते,

जीवन तो है एक सफ़र ऐसा,
जीना मरना ना काम आया,
सफ़र तो है बस चलते रहना,
राह जिधर भी क़दम चले,

बस यों ही जीवन के रास्तों पर,
यूँ ही क़दम बढाते जान,
सुस्ताने को भी रुकना ग़र जो,
उमंगो को कभी ना रुकने देना,

भर बाहों में सूरज को कभी,
सीने में छुपा लेना,
देख दूर से चन्दा को भी,
दिल चाहे तो डूब तू जान,

कतरा कतरा इस जीवन को,
बस यूँ हे तू जीं जान,
आत्म में उतार अपनी,
कहीं इसमे डूब तू जान...
तुम थे...
हम थे...
और समां रंगीन...
समझ गए ना...

बीट गए पल ऐसे,
बीती हो सदियाँ जैसे,
हम भी बैठे,
तुम भी बैठे,
दिन गुज़र गया बातों में,
सूरज डूबा,
तारे निकले,
रात गुज़र गयी आंखों में,
शब्दों का भी साथ बुरा ना,
फिर भी सन्नाटे में बैठे,
इशारों ने जब लिया हो झोंका,
कह गए सब कुछ खामोशी में ...

प्रियतम

फैलाया आँचल बरखा ने,
ढक लेने को जग सम्पूर्ण,
राह में था मई कुछ दूर,
करीब मेरे वो आयी ख़ूब,

फैलाये आँचल ढकती मुझको,
करीब मेरे लहराती आयी,
केशों को अपने खोल वो सारे,
सूरज को भी धक वो आई,

बन मेरी प्रियतम प्यारी,
बाहों में भरने को आतुर,
केशों ने भर लिया था मुख को,
काली घटा थी कुछ ऐसी छाई,

नन्ही नन्ही बूंदों से आ,
लगा रही थी गले वो मुझको,
आलिंगन कर रही हो जैसे,
मोती जैसे बूंदों में भर,

बंद कर पलकें मई अपनी,
करता रह महसूस मई उसको,
कोमल सा वो स्पर्श था उसका,
जैसे घोल रही हो मीत,

काली काली घटा थी घिरी,
बयार भी शीतल हो चली थी,
आयी थी प्रियतम मिलने मुझसे,
बन बारिश की ठण्डी बूँद,

गले लगाती वो झोंको में,
रोम रोम वो चु जाती,
बरसा रिमझिम बूंदे अपनी
,अहिस्ते अहिस्ते समां जाती,

आत्मा को कर गयी वो तर,
रिमझिम रिमझिम बूंदों में,
समा मुख केशों में अपने,
देख मेरी वो प्रियतम आयी।
बहती थी पवन एक शीतल,
मन को भीतर तक चु जाती,
तारों से भरी वो रात,
चांद था खिला केवल एक,

निहारता जैसे आस में डूबा,
भर लेने को एक तारे को,
खोले वो अपनी आतुर वो बाहें,
घिरा तारों के कायनात में,

समझा था एक तारे ने तभी,
प्रेम अटूट चांदनी का फैला,
बढ़ा क़दम चल पड़ा था वो,
डूबने चांदनी के आगोश में,

अहिस्ते अहिस्ते चल पड़ा था सफ़र में,
चांदनी से मिलने हो आतुर वो,
सदियों से था इंतज़ार जिसको,
कायनात में होने को एक अनोखे मिलान,

नयनों में भर नयनों को डूबते,
करीब आते एक दूजे के अहिस्ते,
फैलाये बाहिने थी चांदनी बुलाती,
तारों की उस सुन्दर कायनात को,

दूरियां थी घट रही अब,
चांद और तारे के बीच,
आ रहे थे करीब एक दूजे के,
आलिंगन में डूब जाने को,

मिलान था कैसा सुहाना वो,
प्रेमियों के यों मिलने का,
मिल गया था चांदनी को,
तलाश थी जिसे उस तारे का,

सदियों का इंतज़ार होने को अंत,
समा गए थे एक दुसरे के आगोश में...

प्रकृति

बिछौना तेरा जब धरती बन बैठी,
आसमान बन गया है चादर,
फूल से सजते वो चांद सितारे,
चादर में तेरी सज गए हैं वो,

ओढ़ लिया जब चादर तुने,
समेट प्रकृति को बाहों में,
साथ किसका अब चाहे तू,
नाच रही जब प्रकृति तेरी बाहों में,

परवाह है ना अब साथ किसी के,
राह ना देखें आँखें अब,
प्रीत जब जोडी कायनात से हमने,
कमी हमे फिर कुछ होती भी क्यों,

फूलों को भी सजा रखा है,
चेहरे पर उन्हें बिठा रखा है,
पलकों से चु पंखुड़ियों को,
खुशबू तो दिल में समां रखा है...

एक नयी सुबह

रात्री अँधेरी बीत गयी है,
सुबह उजियारी आयी अब,
कर ले स्वागत हाथ खोल तू,
खडे खडे क्या निहार रही है,

सौगात लिए वो आयी है,
प्यार तुझे दे देने को,
खोल ज़रा दरवाज़ा तो तू,
खादी रहेगी बाहर क्या वो,

फैला कर बाहें बुला भीतर,
बिठा ज़रा उसे तू करीब अपने,
खातिर दारी तो कर ज़रा तू,
अतिथि तभी तो देवो भव,

देख ले उसमे रुप इश्वर का,
तभी तो तुझसे मिलने है आयी,
नही तो वो भी जा सोती,
आराम से कोमल बिस्तर पर,

प्रकाश का एक पुंज लिए,
प्रकाशित करने जीवन तेरा,
पुष्पों को भी खिला दिया,
अपने सुन्दर आगमन से,

सुगंध से भरते वातावरण को वे,
करते कैसे स्वागत उसका,
तू बैठी क्या सोच रही है,
भर ले उसको बाहों में,

भर देगी वो खुशियों का प्रकाश,
तेरे इस सुन्दर जीवन में,
हंसियों खुशियों का है वो खजाना,
राह में जिसके तू बैठी रही सदा से...

गुल

गुल खिला एक सुन्दर आंगन,
बिखेरता सुगंध भीनी भीनी,
महक कैसी वो मदहोश थे,
डूबा जिसमें सारा जग जीवन,

आंधी आयी तूफान आये,
गुल को ना था झुकना कहीँ,
लचक भरी क़मर से लहराता,
मुस्कुराता रह वो हंसी ख़ुशी,

पर गुल ने हिम्मत हारी कुछ ऐसे,
दे दिए वो अधिकार उन्हें,
था जहाँ अभाव इन्द्रियों का,
दिला पाती जो अहसास उन्हें,

दिल जब चाहा खेल गए,
दिल जब चाहा मसल गए,
गुल के क़द्र ना जानी उसने,
अधिकार दिए गुल ने जिन्हे,

ना थे ये बेबसी उसकी,
ना तो थी ये किस्मत,
था बस वक़्त का फेर कुछ ऐसा,
पहचान कहीँ कुछ गलत हुई थी,

रोया तो था गुलशन भर आंसू ,
गुल के दुःख को देख वो रोया,
फिर भी ना पहचाना गुल ने,
गुलशन था वो सच्चा प्रेमी,

तनहा यों रातों में अकेली,
आन्सो बहाया करती थी,
गुलशन भी तो साथ था उसके,
उसका हाथ थाम कभी ना क्यों रोई...

बढ़ा दो क़दम

बढ़ा क़दम छू ले आसमान,
भर ले चांद दामन में तू आज,
नयी सवेरा लाया है फिर कुछ,
तेरे लिए संजोये अपने हाथ,
इंतज़ार है अब किसका तुझे,
बाहें फैलाये कर रह वो तेरा इंतज़ार,
हौसलों की है जरूरत ज़रा सी तुझे,
बढ़ा दे जो दो क़दम तू अहिस्ते से,
समेट लेगा वो तुझे बाहों में अपनी,
दुनिया भी होगी मुट्ठी में तेरी,
हटा ज़रा अब दुविधा के काले ये बादल,
बड़ा तो ज़रा दो क़दम चुने को उसे,
पा जाएगा दुनिया के वो अनमोल तू रतन,
धून्द्ता रह बैठे जिन्हे तू गौड में,
रह गया है फासला बस दो क़दम का,
तेरे और उसके दरमियान फिर ये दूरियां है क्यों,
डरता है क्यों बढाने से वो दो क़दम,
मुस्कुराते सब देख रहे हैं राह तो तेरी,
बस है फासला दो क़दम का बाकी,
तेरी वो मंज़िल भी तो देती आवाज़ है तुझे,
बुला रही वो भी गले लगाने को तुझे,
बस बढ़ा दो क़दम तू उसकी ओरे आज कुछ ऐसे,
डूब जाये वो तुझमे और मिट जाये तू उसमे,
मंज़िल का अक्स हो तुझमे और तू बन जाये मंज़िल अब उसकी...

आलिंगन

चल ऐ इन्सान समां जाएँ आज,
दे दे बाहें अपनी भर बाहों में मेरी,
आलिंगन कर डूब जायें आज हम कुछ ऐसे,
आज मैं तुझमे और तू डूब जाये मुझमें,

आलिंगन हो दुनिया का अनोखा सम्पूर्ण,
दुनिया भी रह जाये देखती नि:शब्द,
चल आज कर ले आलिंगन कुछ ऐसा,
रच दें परिभाषा आलिंगन की एक नयी,

चाह्चहआहटों से भर जाये वन उपवन,
चिडियों का हो छाया घनेरा कुछ ऐसा,
संगीत से उनके गूँज उठे कुदरत का हर एक कोना,
कोयल की कूक से खिल नाच उठे जीव सारे,

खिल जाये पत्ता पत्ता थाम कली को भी डाली,
नाच उठे हर एक पशु वन में हो मदमस्त,
चल पड़े बयार भी हवा की कुछ ऐसे,
वातावरण भी मुस्कुरा उठे खिलखिला कुछ आज,

चल आ कर लें आज हम आलिंगन कुछ ऐसे,
नदियों में भी आ जाये कुछ ऐसे बल,
लहरा कर चल पड़े जैसे एक मदमस्त भंवर,
पुष्पों के नशीले अधरों पर रख अपने वो अधर,

लहराती बलखाती क़मर हो जैसे सुंदरी,
जाती हो पनघट पर लिए अपनी मटकी,
बहते हुए जल में भी आ जाये ऐसी एक खुमारी,
बहाव में हो एक नृत्य का आलिंगन करती वो प्यारी,

चल कर लें आलिंगन हम इंसानियत का आज,
दबोच आज अपनी बाहों में कुछ ऐसे,
लग जायें हम गले उसके खींच सीने में अपने,
समा लेने दे आज मुझे इंसानियत को खुद में,

चल आ कर ले आलिंगन आज कुछ ऐसे,
आ जाये खुदा भी धरती पर देखने ये मंज़र,
संगम इंसानियत का मनुष्य में समाता,
आलिंगन कुछ ऐसा खिल जायं जिसमें डूबें हम सारे ॥

जीवन के रंग

विभिन्न रंगो से खिलती ये दुनिया,
श्याम श्वेत में भी बहक जाते ये रंग,
एक एक रंग है दिखाता रंग अपने,
वक़्त के पलटते कुछ पन्नों के संग,

श्वेत रंग में लिप्त कभी मैं,
उजालों के लगा पंख उड़ जाता,
कभी ओढ़ चादर श्याम मैं ऊपर अपने,
डूब जाता समंदर के गर्त में उतर,

सच्चाई में होता झूठ का वास है अक्सर,
झूठ में सच्चाई का ना आभास क्यों होता,
रंग विभिन्न ये बनाए इश्वर ने कैसे,
हर एक रंग है बिखेरता एक अलग ही रंग,

रख गुलाब की पंखुड़ियों पर अधरों को अपने,
लाली भी उसकी ये सुर्ख जला बढ़ जाता,
विष जब उतरता मनुष्य के गले के नीचे,
स्याह नील रंग में रंगता बदन को उसके,

वक़्त के क़दमों पर बिखरते ये रंग,
रंग दुनिया के विभिन्न दिखलाते,
रंगों में डूबी ये कैसे है दुनिया,
रंग रंग के रंग क्या ख़ूब दिखाते,

रंगों की छठा बनाती एक चक्रव्यूह,
तांडव करता मनुष्य भी ना भेद पाता,
शांति प्रेम का प्रतिबिम्ब वो श्वेत भी,
डूब जाता श्याम रंग का कफ़न लपेट,

रंगों की एक एक किरण है फूटती,
वक़्त का पुष्प खोलता पंखुड़ियाँ जब अपनी,
जीवन दान दे जाते कुछ सुन्दर वो रंग,
वहीँ कुछ लाद ले जाते रख जीवन को अपने कंधे,

देखता रह जाता मैं खड़े यूँ ही सोचता,
मनुष्य के कैसे बदलते बदरंग ये रंग,
कभी लग गले गुदगुदा जाता वो मुझको,
कभी दबा गले ले जाता मनुष्यता भी संग,

खिलते प्रकाशमय सूर्य को भी निगलता,
घोर अन्धकार का वो एक श्याम रंग,
घटा बन वही दे जाता जीवन हमें,
बारिश की बूंदों से कर तर वो हमको,

सूर्य को भी डस जाता बन ग्रहण कभी,
शीतलता भी चुरा ले जाता चन्दा के संग,
कैसे निखरते हैं दुनिया के रंग,
जीवन की डोर ने जब थामी इश्वर की पतंग...

कविता...

कविता...
बहाव भावनाओं का,
बहता गया जग में,
शुद्ध जल का एक चश्मा,
कहीं गर्माहट,
कहीं शीतलता,
देता हर रुप में,
एक नया जीवन इस श्रीस्ती में,
निकलती एक नयी कविता,
श्रोत है जिसका दिल,
कभी गर्माहट को लिए गोद में,
कभी शीतलता को लगाते गले,
देती जीवन हर शख्स को,
यही तो है कविता...

कितनी शीतल,
कितनी मधुर,
किरण एक चलती हुई,
कविता के रथ पर,
अश्व भावनाओं के,
दौड़ते इस पथ पर,
सारथी है जिसका खुदा,
रौशनी दिखाता उस पथ पर,
प्रकाश सुर्य काया,
किरण सुनहली सी,
श्रोत सुर्य है जिसका,
दहकता हुआ अंगारों से,
जीवन संजोये भीतर अपने,
आतुर हो तड़पता,
संजोने को इन अंगारों में,
जीवन के एक किरण,
करने को पूर्ण इस श्रीस्ती को,
चल पडी हो कर सवार,
कविता के रथ पर,
भावनाओ के अश्व दौड़ते,
सारथी जिसका है खुदा,
किरण हो सवार,
कविता के रथ पर,
दौड़ चला ले कर,
सार जीवन का संजोई,
अश्वा भावनाओं के दौड़ते,
चल पडी किरण हो सवार,
कविता के रथ पर...
एक अलसाए नींद से,
उठाने कि कोशिश करता हुआ,
अंगडाई लेते हुए,
आने को तयार,
झाँका जो जाकर बाहर,
खड़ा है एक नया वर्ष तैयार,
है कितना आतुर,
सोया था
जो वर्षों से बेकार,
आया है उसका उठने का मौसम इस बार,
बाहें पसारता,
आंखें मिल्मिलाता,
अंगडाई लेता
भागता अपनी निद्रा को,
कहता उससे ये बार बार,
गुजारा वक़्त बहुत है तेरे साथ,
अब जा तू किसी और के पास,
दुनिया करती इन्तेज़ार मेरा,
जान है मुझको अब उनके पास,
देख ए मेरी प्रियतम निद्रा,
पूरा विश्वा है कैसा तैयार,
पसारे बाहें अपने
लिए फूलो का हार ,
कैसे देखता राह मेरी,
स्वागत कराने को तैयार,
बोल तू कैसे तोडूं दिल में इनका,
जा तू अब दूर मुझसे,
जाना है मुझे अब इनके पास,
देना है मुझे वो सब कुछ,
देखते ये राह जिसकी बरसों से,
कर ना सका कुछ पहले इसके,
प्रेम में था सोया तेरे में साथ,
जाता हूँ में अब इनसे मिलाने,
देख कैसे देख रहे ये मेरी राह,
ना रोक तू मुझे अब,
करता हूँ में तुझसे प्यार,
पर होगा अब जान मुझे,
इन प्यारे लोगों के पास!!!