Sunday, September 30, 2007

तुम थे...
हम थे...
और समां रंगीन...
समझ गए ना...

बीट गए पल ऐसे,
बीती हो सदियाँ जैसे,
हम भी बैठे,
तुम भी बैठे,
दिन गुज़र गया बातों में,
सूरज डूबा,
तारे निकले,
रात गुज़र गयी आंखों में,
शब्दों का भी साथ बुरा ना,
फिर भी सन्नाटे में बैठे,
इशारों ने जब लिया हो झोंका,
कह गए सब कुछ खामोशी में ...

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