दुनिया के इस रंगमंच पर,
खेलते खेल हम सारे,
कभी हँसते हुए मर जाते,
कभी रोते हुए हंस जाते,
कभी भर गुलाब को हांथो में,
उसकी भीनी सुगंध में डूब जाते,
कभी रख क़दम समंदर पर,
अहिस्ते से उस पर उतरा जाते,
जीवन के इन रंगो में,
पल पल हम चलते जाते,
हर एक पल में जीं लेते,
हर एक पल में मर जाते,
जीवन तो है एक सफ़र ऐसा,
जीना मरना ना काम आया,
सफ़र तो है बस चलते रहना,
राह जिधर भी क़दम चले,
बस यों ही जीवन के रास्तों पर,
यूँ ही क़दम बढाते जान,
सुस्ताने को भी रुकना ग़र जो,
उमंगो को कभी ना रुकने देना,
भर बाहों में सूरज को कभी,
सीने में छुपा लेना,
देख दूर से चन्दा को भी,
दिल चाहे तो डूब तू जान,
कतरा कतरा इस जीवन को,
बस यूँ हे तू जीं जान,
आत्म में उतार अपनी,
कहीं इसमे डूब तू जान...
Sunday, September 30, 2007
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