Sunday, September 30, 2007

कविता...

कविता...
बहाव भावनाओं का,
बहता गया जग में,
शुद्ध जल का एक चश्मा,
कहीं गर्माहट,
कहीं शीतलता,
देता हर रुप में,
एक नया जीवन इस श्रीस्ती में,
निकलती एक नयी कविता,
श्रोत है जिसका दिल,
कभी गर्माहट को लिए गोद में,
कभी शीतलता को लगाते गले,
देती जीवन हर शख्स को,
यही तो है कविता...

कितनी शीतल,
कितनी मधुर,
किरण एक चलती हुई,
कविता के रथ पर,
अश्व भावनाओं के,
दौड़ते इस पथ पर,
सारथी है जिसका खुदा,
रौशनी दिखाता उस पथ पर,
प्रकाश सुर्य काया,
किरण सुनहली सी,
श्रोत सुर्य है जिसका,
दहकता हुआ अंगारों से,
जीवन संजोये भीतर अपने,
आतुर हो तड़पता,
संजोने को इन अंगारों में,
जीवन के एक किरण,
करने को पूर्ण इस श्रीस्ती को,
चल पडी हो कर सवार,
कविता के रथ पर,
भावनाओ के अश्व दौड़ते,
सारथी जिसका है खुदा,
किरण हो सवार,
कविता के रथ पर,
दौड़ चला ले कर,
सार जीवन का संजोई,
अश्वा भावनाओं के दौड़ते,
चल पडी किरण हो सवार,
कविता के रथ पर...

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