Friday, February 12, 2016

Read Some Where

बहुत गहराई वाली बात है...
चाय की दुकानों और होटलों पर जो "छोटू" होते हैं,
वो अपने घर के "बड़े" होते हैं


दरख़तों की कतारों में यूं दीवानगी छाई,
परिंदे चहक उठे जैसे ही सबा आई,
बारिश की बूंदों की मोसिकी़ जरा सुनिये
बुलबुलों के तरन्नुम की जब सदा आई।


अधर कुमार  (०५-०९-२०१५)

सबा = पुर्वा=eastern wind
मौसिकी़ = संगीत = music
तरन्नुम = मधुर संगीत = music
सदा = अवाज = sound
जम गई बर्फ क्यों जज्बातों की हरारत पर,
जल गए हर्फ़ क्यों मामुली सी शरारत पर।
रिस रहा है वक्त क्यों जिंदगी की दरारों से,
फिसल रहा है रेत क्यों उंगलियों के किनारो से,
चढ़ गई धूल क्यों रिश्तों के गलियारों मे,
उग गए शूल क्यों चौक और चौबारों मे,
दर्द है, टीस है, शिकवा है तेरी रफ्तारों से
इतनी जल्दी है क्यों, जरा मिल तो ले अपने यारों से।
खुद की तलाश में खुद ही निकलना पड़ा मुझे,
शिकवा ये कि मैने खुदको खुद से ही खो दिया।
फलक की चाह मे, जमीं से दूर हुआ मैं
अपने किए फै़सलों से ही मजबूर हुआ मैं
मैं अपने घर का कभी इक रोशन चराग था
सितारों की इस दुनिया में बेनूर हुआ मैं।

सुहाना सा ख्वाब

दोबारा फिर वही कहानी कहो ना,
सुहाना सा वही ख्वाब बुनो ना।
गुनगनाओ गीत फिर वही मिलन के,
कुछ कह रहे हैं ये जज्बात, सुनो ना।
चुरा लो मुझको मुझ से एक बार फिर से,
शुरू से फिर एक शुरूआत करो ना।
जब कसम ले ही ली है साथ हंसने रोने की,
मैं भी मुस्कुराता हूं अब तुम भी हंसो ना।
दोबारा फिर वही कहानी कहो ना,
सुहाना सा वही ख्वाब बुनो ना।
रेत सी फिसलती जिंदगी,
कश्मकश से भरे दिन,
वक़्त की बदलती करवटें,
जरा सुस्ता तो लूं दो पलछिन

Beautiful Lines.......

दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी
~ LalChandFalak


ये सर्द रात, ये आवारगी, ये नींद का बोझ
हम अपने शहर मे होते तो घर गए होते
#‎उम्मीद_फ़ाज़ली‬

कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता,
कहीं जमीं तो कहीं आसमां नही मिलता ।
#‎उम्मीद_फ़ाज़ली‬

आसमानों से फ़रिश्ते जो उतारे जाएँ
वो भी इस दौर में सच बोलें तो मारे जाएँ
#‎उम्मीद_फ़ाज़ली‬ 



ऐ दोपहर की धूप बता क्या जवाब दूँ
दीवार पूछती है कि साया किधर गया
#‎उम्मीद_फ़ाज़ली‬


अब ये हंगामा-ए-दुनिया नहीं देखा जाता
रोज़ अपना ही तमाशा नहीं देखा जाता
#‎तारिक़_नईम‬


यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे
#‎बशीर_बद्र‬



 शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तो अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता
#‎अमीर_मीनाई‬


साए लरज़ते रहते हैं शहरों की गलियों में
रहते थे इंसान जहाँ अब दहशत रहती है
~ अमजद इस्लाम अमजद


अंदर का ज़हर चूम लिया, धुल के आ गए
कितने शरीफ लोग थे सब खुल के आ गए।
~राहत इंदौरी


वक्त रहता नही कहीं टिक कर
इसकी आदत भी आदमी सी है।
शाम से आंख मे नमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है।
~Jagjit Singh

मेरी ख़्वाइश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जांऊ,
मां से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं।
~मुनव्वर राणा


रंज  की  जब  गुफ्तगू  होने लगी 
आप से तुम, तुम से तू होने लगी 
~ दाग दहलवी 


सर्द रातो की आहट सरसराती तो होगी,
धुंध भरी सुबहें कंपकपाती तो होगी,
सरसों के खेतों में पीली चादर ओढ़कर
ओस की बूंदे गुनगुनाती तो होगी।

Beautiful Poem by --निदा फ़ाज़ली--

चलो इस तरह से सजाएँ उसे
ये दुनिया हमारी तुम्हारी लगे।
हम लबों से कह न पाये उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है।
कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है
सब ने इंसान न बनने की क़सम खाई है।
घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।
कभी किसी को मुकम्मल जहां नही मिलता
कही जमीं तो कही आसमां नही मिलता।


बसंत पंचमी

सरसों अपने यौवन पर मुस्कुराती है
पीली चादर खेतों मे लहलहाती है,
सर्द हवाऐं गर्म अहसास दे जाती है,
गुनगुनी धूप गालों को सहलाती है,
मीठे पीले चावल जब मां बनाती है,
ऐसे मेरे गांव मे बसंत पंचमी आती है।

चाँद अधूरा है

सुबह अधूरी है मौसम-ए-शाम अधूरा है
सूरज अधूरा है आसमान अधूरा है
सितारों के शहर में माँ तेरा ये चाँद अधूरा है|
ना पतंगे तीज की होंगी, ना झूलों के वो हिचकोले,
पत्थर के इस जंगल में, हर सावन अधूरा है|
मन अपना छोड़ आया हूँ मै अपने घर के आँगन में,
जो लेकर साथ आया हूँ वो सामान अधूरा है|
घने बरगद की छांव में वहां बेपरवाह गुजारे दिन
बचाये धुप से क्या कोई, यहाँ हर दामन अधूरा है|
कोपलें दो साथ लाया हूँ अपने घर की क्यारी की,
बिना माली के लेकिन ये मेरा बागान अधूरा है|
शिकन ना होती गर जो दिल ने ना यूं कहा होता,
रहे हमेशा बंद ये मुट्ठी, मेरा ये अरमान अधूरा है।
सुबह अधूरी है मौसम-ए-शाम अधूरा है
सूरज अधूरा है आसमान अधूरा है
सितारों के शहर में माँ तेरा ये चाँद अधूरा है|