Friday, October 5, 2007

अभी अभी तो पड़े थे खुशनुमा से ये कदम,
ज़मीन ने भी तो सूंघा था इन्हें सीने में भर,

एक लम्हे में बढ़े थे छू लेने को हम आसमान,
और दूजे ही लम्हे समां गया बाहों में वो मेरे,

सुनसान राहों पर रखे थे हमने ये कदम,
और कुछ लम्हों में ही एक कारवाँ सा बन गया,

अंगड़ायी ले वक़्त ने बदली करवटें कुछ ऐसे,
अहिस्ते से हमने उस आसमान को आज छू लिया,

मिचमिचायी सी ये आँखें खुलने की कोशिश में थी,
हाथों में भर इन्हें हम मल ही तो रहे थे,

आफताब की ज़ौ ने गले से हमे कुछ यूँ लगा लिया,
चूम कर अफाक ने एक नया सा आगाज़ भी कर दिया,

वक़्त ये सुहाना कुछ ऐसा बाहों में गुज़र गया,
पता भी ना चला कब ये हमें चूम कर खुद बिखर गया,

मंज़िल की तलाश में तो हम बस यूँ ही चले थे,
वक़्त कुछ ऐसा खुशनुमा सरपट सा गुज़र गया

पलकों को जैसे बंद कर बस एक बार झपकायी हो मैंने,
दूजे ही पल लो मंज़िल हमसे खुद रूबरू मिलने आ गयी ॥
लफ्ज़ और हर्फ़ का तो संग है बड़ा पुराना,
सदियों से मिल दोनो ने सैकड़ों सुन्दर गीत है गाया,

ख्वाहिशें और उम्मीदों का मिलन तो है बड़ा ही पुराना,
ख्वाब बुने हैं सुन्दर जब भी एक दूजे ने हाथ है थामा,

ना रही कभी शिक़ायत और गुंजाइश की कोई गुफ़्तगू ,
नाराजगी के लिए ना छोड़ी जगह कहीँ भी कभी भूल,

बुनियाद कैसे रखें हम उन रिश्तों की बता ऐ खुदा,
जिन रिश्तों का तूने खुद ही सदियों पहले है बनाया,

लफ्जों में कर दूँ कैसे बयाँ मैं सब कुछ,
जब तूने वो लफ्ज़ ही इस दुनिया के लिए नही बनाया,

वो लफ्ज़ तो रखे हैं तूने बस खुद के लिए संभाले,
इन्सान को तू तुने ऐसा अछूता ही है बनाया,

पहुँच सका जो कर पार इस दुनिया का मेला,
संभाल उसे गोदी में अपनी गले से तूने लगाया,

लफ्ज़ में कर दूँ कैसे बयाँ मैं सब कुछ,
तुने मुझे जिसका गहराई तक सुन्दर अहसास है दिलाया ॥