फैला दुखों का एक अथाह समंदर,
दुनिया सार्री जैसे डूब गयी,
इसकी बाह्य सुन्दरता में,
बस कर दुनिया ये लीं हो गयी,
जा फंसा था में एक दिन,
निकलने की कोशिश में इससे,
हाथ पर मई तड़प चलाने लगा,
ऊपर आ थोडा सा में उतराने लगा,
किश्ती आयी एक नज़र करीब मुझे,
सुख साधनों से सुसज्जित तैरती,
कारवां लोगों का था सवार इसमे,
आनंदित से दिख रहे थे सभी नर और नारी,
हिला हिला हाथ मुझे बुलाने लगे,
आने को मुझे वो ललचाने लगा,
दुखों को अपने छिपा भीतर समेट,
बाहर से वो मुस्कुराने लगे,
दिल में आये कुछ विचार मेरे भी,
किश्ती में हो सवार सुख भोगने के,
सुखों के भीतर छिपा दर्द महसूस किया,
मुस्कुराते हुए भी उन्हें रोते हुए देखा,
कर अनदेखा उन्हें में छोड़ पीछे,
बढ़ चल कुछ और आगे मई तैरता हुआ,
सनाता सा दिख रह था चारों ओरे,
दुखों के कल के सिवा कुछ और ना दिखा मुझे,
दुबकी मैंने एक गहरी तभी लगा ली,
भीतर की दुनिया तब मेरे सामने आ गयी,
भाव्नाये कई थी तैरती डूबी वहाँ,
अहिस्ते अहिस्ते करीब वो मेरे आती गयीं,
तलहटी में उसकी उतरता मई गया,
कुछ सीपियों को मैंने पाय वहां,
खोल उन्हें देखा तो दंग राग गया,
अनंद का एक सुन्दर मोती मुझे मिल गया,
दुनिया की रीत समझ तब आयी,
दुखों के समंदर में जब दुबकी लगाई,
डूब कर जा लगा तलहटी में जब,]
सुखों के समंदर का मोती मिल गया,
इश्वर को कर महसूस मई लालायित हो उठा,
परे दुनिया के सुखों से महसूस कुछ किया,
सुकून एक शीतल सा मुझे मिल गया,
इश्वर को जैसे मैंने आज पा लिया
Monday, October 1, 2007
रहो जमीं पे मगर आसमां का ख्वाब रखो
तुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखो
खड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभी
उभर रहा जो सूरज तो धूप निकलेगी
उजालों में रहो, मत धुंध का हिसाब रखो
मिले तो ऐसे कि कोई न भूल पाये तुम्हें
महक वंफा की रखो और बेहिसाब रखो
अक्लमंदों में रहो तो अक्लमंदों की तरह
और नादानों में रहना हो रहो नादान
सेवो जो कल था और अपना भी नहीं था,
दोस्तोंआज को लेकिन सजा लो एक नयी पहचान से
लेखक :-
दीप्ति रस्तोगी
तुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखो
खड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभी
उभर रहा जो सूरज तो धूप निकलेगी
उजालों में रहो, मत धुंध का हिसाब रखो
मिले तो ऐसे कि कोई न भूल पाये तुम्हें
महक वंफा की रखो और बेहिसाब रखो
अक्लमंदों में रहो तो अक्लमंदों की तरह
और नादानों में रहना हो रहो नादान
सेवो जो कल था और अपना भी नहीं था,
दोस्तोंआज को लेकिन सजा लो एक नयी पहचान से
लेखक :-
दीप्ति रस्तोगी
दोस्ती
दोस्ती नाम नहीं सिर्फ़ दोस्तों के साथ रेहने का..
दोस्ती नाम नहीं सिर्फ़ दोस्तों के साथ रेहने का..
बल्कि दोस्त ही जिन्दगी बन जाते हैं,
दोस्ती में..जरुरत नहीं पडती,
दोस्त की तस्वीर की.देखो
जो आईना तो दोस्त नज़र आते हैं,
दोस्ती में..येह तो बहाना है
कि मिल नहीं पाये दोस्तों से आज..
दिल पे हाथ रखते ही एहसास उनके हो जाते हैं,
दोस्ती में..नाम की तो जरूरत हई नहीं पडती
इस रिश्ते मे कभी..पूछे नाम अपना ओर,
दोस्तॊं का बताते हैं,
दोस्ती में..कौन केहता है कि
दोस्त हो सकते हैं जुदा कभी.
.दूर रेह्कर भी दोस्त,
बिल्कुल करीब नज़र आते हैं, दोस्ती में..
सिर्फ़ भ्रम हे कि दोस्त होते ह अलग-अलग..
दर्द हो इनको ओर, आंसू उनके आते हैं ,
दोस्ती में..माना इश्क है
खुदा, प्यार करने वालों के लिये
"अभी"पर हम तो अपना सिर झुकाते हैं,
दोस्ती में..ओर एक ही दवा है
गम की दुनिया में क्युकि..भूल के सारे गम,
दोस्तों के साथ मुस्कुराते हैं,
दोस्ती दोस्ती नाम नहीं सिर्फ़
दोस्तों के साथ रेहने का..
बल्कि दोस्त ही जिन्दगी बन जाते हैं,
दोस्ती में..जरुरत नहीं पडती,
दोस्त की तस्वीर की.देखो जो
आईना तो दोस्त नज़र आते
दोस्ती नाम नहीं सिर्फ़ दोस्तों के साथ रेहने का..
बल्कि दोस्त ही जिन्दगी बन जाते हैं,
दोस्ती में..जरुरत नहीं पडती,
दोस्त की तस्वीर की.देखो
जो आईना तो दोस्त नज़र आते हैं,
दोस्ती में..येह तो बहाना है
कि मिल नहीं पाये दोस्तों से आज..
दिल पे हाथ रखते ही एहसास उनके हो जाते हैं,
दोस्ती में..नाम की तो जरूरत हई नहीं पडती
इस रिश्ते मे कभी..पूछे नाम अपना ओर,
दोस्तॊं का बताते हैं,
दोस्ती में..कौन केहता है कि
दोस्त हो सकते हैं जुदा कभी.
.दूर रेह्कर भी दोस्त,
बिल्कुल करीब नज़र आते हैं, दोस्ती में..
सिर्फ़ भ्रम हे कि दोस्त होते ह अलग-अलग..
दर्द हो इनको ओर, आंसू उनके आते हैं ,
दोस्ती में..माना इश्क है
खुदा, प्यार करने वालों के लिये
"अभी"पर हम तो अपना सिर झुकाते हैं,
दोस्ती में..ओर एक ही दवा है
गम की दुनिया में क्युकि..भूल के सारे गम,
दोस्तों के साथ मुस्कुराते हैं,
दोस्ती दोस्ती नाम नहीं सिर्फ़
दोस्तों के साथ रेहने का..
बल्कि दोस्त ही जिन्दगी बन जाते हैं,
दोस्ती में..जरुरत नहीं पडती,
दोस्त की तस्वीर की.देखो जो
आईना तो दोस्त नज़र आते
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