यादों का क्या है...
जब चाहे तब चली आती हैं,
हम तो इन्हें कभी नही बुलाते,
पर क्या करें…
जब भी तनहा होता हूँ,
आकर हमे गले से लगा लेती हैं,
आप तो सोहबत में आये ना कभी,
इन यादों का ही तो सहारा है,
यादों का ही तो भरोसा है,
और ये यादें...
खूबसूरत यादें...
प्यारी यादें...
छू कर करीब से,
अहसास दिलाती हैं,
कुछ उन उनकाही,
उँची बातों की,
जो की कहीँ है भीतर,
इस दिल की गहराइयों में...
छुपी हुई है,
दबी हुई है,
यादें…
प्यारी यादें...
उसकी यादें...
यही तो है हमारी धरोहर
और तो कुछ बचा नही,
एक यही तो है सहारा,
इन यादों का...
मेरी यादें...
हमेशा मेरे साथ,
मेरे पास,
उन अहसासों को जिंदा करती हुई,
उन हसीं पलों को जीवन देती हुई,
याद्दें है
ये ऐसे यादें...
कभी ना होंगी दूर हमसे,
ये यादें।
Wednesday, August 22, 2007
कहां है
कहां है, कहां है...
कोहरे का वो एक ठंडा सा अहसास,
वो उसका एक धुन्ध्लापन,
वो उसकी एक चाहत.
समाने को सबकुछ अपने आगोश में,
वो उसका प्यार लेने को बेसब्र,
आगोश में अपने सब कुछ,
कहां है, कहां है!...
कोहरे का वो धीरे धीरे बाहों को फैलाना,
सब कुछ अपने दिल में समाना,
साथ ही चोटी चोटी चमकती हीरे जैसे बूंदों,
का एक शृंगार करना,
कोहरे के आगोश में महसूस करना,
उस प्रेम की गर्माहट को,
ठंडे से अहसास के बीच से,
वो गर्माहट का धीरे से झांकना,
छू लेना दिल की गहराइयों को,
वो उसका प्यार,
वो उसका अहसास,
कहां है, कहां है...
उस प्रिये के तलाश में,
उस प्रिये के इंतज़ार में,
बैठे हम सब राह देखते,
जाने कहां है वो निष्ठुर
जाने कहां है वो निर्मोही,
लगता जैसे अपनी प्रियतम के साथ,
लगता जैसे अपनी प्रियतम के आगोश में...
भूल बैठा हम सबको,
भूल गया हमे वो,
भूल गया प्यार को...
राह देखते हम सब उस निष्ठुर की,
अयीगा कब वो हमारे आगोश में,
वो उसका धुन्ध्लापन...
वो उसका कोमल अहसास,
वो उसकी चाहत,
वो उसका प्यार,
वो उसका अआगोश,
कहां है, कहां है, कहां है...
कोहरे का वो एक ठंडा सा अहसास,
वो उसका एक धुन्ध्लापन,
वो उसकी एक चाहत.
समाने को सबकुछ अपने आगोश में,
वो उसका प्यार लेने को बेसब्र,
आगोश में अपने सब कुछ,
कहां है, कहां है!...
कोहरे का वो धीरे धीरे बाहों को फैलाना,
सब कुछ अपने दिल में समाना,
साथ ही चोटी चोटी चमकती हीरे जैसे बूंदों,
का एक शृंगार करना,
कोहरे के आगोश में महसूस करना,
उस प्रेम की गर्माहट को,
ठंडे से अहसास के बीच से,
वो गर्माहट का धीरे से झांकना,
छू लेना दिल की गहराइयों को,
वो उसका प्यार,
वो उसका अहसास,
कहां है, कहां है...
उस प्रिये के तलाश में,
उस प्रिये के इंतज़ार में,
बैठे हम सब राह देखते,
जाने कहां है वो निष्ठुर
जाने कहां है वो निर्मोही,
लगता जैसे अपनी प्रियतम के साथ,
लगता जैसे अपनी प्रियतम के आगोश में...
भूल बैठा हम सबको,
भूल गया हमे वो,
भूल गया प्यार को...
राह देखते हम सब उस निष्ठुर की,
अयीगा कब वो हमारे आगोश में,
वो उसका धुन्ध्लापन...
वो उसका कोमल अहसास,
वो उसकी चाहत,
वो उसका प्यार,
वो उसका अआगोश,
कहां है, कहां है, कहां है...
ग़ज़ल
लबों में छाये हुए खामोशी का ,
जमाना गुज़र गया,
खिजा के गम में मौसम,
सुहाना गुजर गया।
आंखों से पीकर किस,
मोड़ पे आ पंहुचा हूँ,
रस्ते में पीछे कहॉ,
म्यखाना गुजर गया।
हर तरफ शोर उठा,
दुहाई सी मच गयी,
जब शमा के करीब से ,
परवाना गुजर गया।
कह कहए लगाए लोगों ने,
मुझे बेहाल देखकर,
कहने लगे देखो,
दीवाना गुजर गया।
दर्द जब भी उठा,
दिल में तेरे नाम का,
आंखों के सामने एक,
अफसाना सा गुजर गया।
इस जिंदगी में अगर,
तुमसे होगा समाना कभी,
समझा लेंगे इस दिल को,
अंजना गुजर गया।
जमाना गुज़र गया,
खिजा के गम में मौसम,
सुहाना गुजर गया।
आंखों से पीकर किस,
मोड़ पे आ पंहुचा हूँ,
रस्ते में पीछे कहॉ,
म्यखाना गुजर गया।
हर तरफ शोर उठा,
दुहाई सी मच गयी,
जब शमा के करीब से ,
परवाना गुजर गया।
कह कहए लगाए लोगों ने,
मुझे बेहाल देखकर,
कहने लगे देखो,
दीवाना गुजर गया।
दर्द जब भी उठा,
दिल में तेरे नाम का,
आंखों के सामने एक,
अफसाना सा गुजर गया।
इस जिंदगी में अगर,
तुमसे होगा समाना कभी,
समझा लेंगे इस दिल को,
अंजना गुजर गया।
एक अहसास
चांद को देखा,
एक अहसास सा हुआ...
क्यों है चांदनी इतनी शीतल,
एक अहसास सा हुआ...
देती रौशनी उस काली रात में,
सुर्य जब कहीं ग़मगीन हुआ,
अहसास इस बात का,
दिल की गहराइयों तक हुआ...
चांदनी से लिप्त चांद,
जैसे नहाया अभी अभी,
डूब कर उस उजली चांदनी में,
क्यों करता है एक गुमान अपने में,
एक अहसास सा हुआ...
श्वेत ठंडे बर्फ के गोलों सी,
चांदनी का अहसास सा हुआ...
समेटे हुए एक आसमा अपने आप में,
चांद का देती साथ,
उन रात की काली छठा में,
तारों के साथ मदमस्त रंगीनियाँ,
सुर्य भी जब छोड़ गाया,
उस नीले अम्बर को,
चांदनी का साथ उस चांद को,
एक अहसास सा हुआ...
रात की वो नशीले छठा,
सन्नाटा सा छाया चारों ओरे,
छोड़ गए साथ जब,
चांदनी ने उसका साथ तब दिया...
समुन्द्र में उठती लहरें,
निखरती चांदनी की छठा में,
करती एक शौर अजीब सा,
पुकारती जैसे उस चांद को,
choo लेने को बेताब चांद को,
एक अहसास सा हुआ...
छोड़ा साथ जब सभी ने,
चांदनी ने साथ उस वक़्त दिया...
देखता होऊं चन्दा की चांदनी को,
तो ये एक अहसास सा हुआ...
है क्यों इतनी कोमल...
है क्यों इतनी मधुर...
है क्यों इतनी शीतल...
है क्यों इतनी उजली...
है क्यों इतनी पवित्र...
एक अहसास सा हुआ...
चन्दा की चांदनी का,
एक अहसास सा हुआ…
एक अहसास सा हुआ...
क्यों है चांदनी इतनी शीतल,
एक अहसास सा हुआ...
देती रौशनी उस काली रात में,
सुर्य जब कहीं ग़मगीन हुआ,
अहसास इस बात का,
दिल की गहराइयों तक हुआ...
चांदनी से लिप्त चांद,
जैसे नहाया अभी अभी,
डूब कर उस उजली चांदनी में,
क्यों करता है एक गुमान अपने में,
एक अहसास सा हुआ...
श्वेत ठंडे बर्फ के गोलों सी,
चांदनी का अहसास सा हुआ...
समेटे हुए एक आसमा अपने आप में,
चांद का देती साथ,
उन रात की काली छठा में,
तारों के साथ मदमस्त रंगीनियाँ,
सुर्य भी जब छोड़ गाया,
उस नीले अम्बर को,
चांदनी का साथ उस चांद को,
एक अहसास सा हुआ...
रात की वो नशीले छठा,
सन्नाटा सा छाया चारों ओरे,
छोड़ गए साथ जब,
चांदनी ने उसका साथ तब दिया...
समुन्द्र में उठती लहरें,
निखरती चांदनी की छठा में,
करती एक शौर अजीब सा,
पुकारती जैसे उस चांद को,
choo लेने को बेताब चांद को,
एक अहसास सा हुआ...
छोड़ा साथ जब सभी ने,
चांदनी ने साथ उस वक़्त दिया...
देखता होऊं चन्दा की चांदनी को,
तो ये एक अहसास सा हुआ...
है क्यों इतनी कोमल...
है क्यों इतनी मधुर...
है क्यों इतनी शीतल...
है क्यों इतनी उजली...
है क्यों इतनी पवित्र...
एक अहसास सा हुआ...
चन्दा की चांदनी का,
एक अहसास सा हुआ…
ख्वाब
ख़्वाबों को पूरा करने का ख्वाब है
बन हंसी तेरे लबों पर रहने का ख्वाब है,
सिमट जाऊँगा कभी आगोश में तेरे,
ख्वाब को हकीकत करने का ख्वाब है,
ना बचा सका दामन कोई समेट कर,
जब हाथों में थाम इश्क ने दामन,
बन बारिश की वो ठण्डी बूँदें,
बरस गया इश्क सब कुछ दे जाने को,
क्या करेगा आज़माइश इश्क के कैसे कोई,
तकदीर में लिख दिया जो भी खुदा ने,
ख्वाब भी बन गए जायेंगे हकीकत,
चाह ले तू जो दिल के जोश से,
आएगी ना मौत भी मेरी चौखट पर,
तेरे इश्क में जब तक महफूज़ हूँ,
जिन्दगी में है बाहारें कुछ ऐसे,
ख्वाब भी जैसे सच पर सवार हैं,
सोच भी सकते हैं कैसे जीं ले तुझ बिन,
मार कर मिट चुके तुझमे ऐसे इन्सान हैं,
ख्वाब तो खिल गए है सुर्ख गुलाब से,
बाग्दोरे जीवन कि अब तो तेरे नाम है...
बन हंसी तेरे लबों पर रहने का ख्वाब है,
सिमट जाऊँगा कभी आगोश में तेरे,
ख्वाब को हकीकत करने का ख्वाब है,
ना बचा सका दामन कोई समेट कर,
जब हाथों में थाम इश्क ने दामन,
बन बारिश की वो ठण्डी बूँदें,
बरस गया इश्क सब कुछ दे जाने को,
क्या करेगा आज़माइश इश्क के कैसे कोई,
तकदीर में लिख दिया जो भी खुदा ने,
ख्वाब भी बन गए जायेंगे हकीकत,
चाह ले तू जो दिल के जोश से,
आएगी ना मौत भी मेरी चौखट पर,
तेरे इश्क में जब तक महफूज़ हूँ,
जिन्दगी में है बाहारें कुछ ऐसे,
ख्वाब भी जैसे सच पर सवार हैं,
सोच भी सकते हैं कैसे जीं ले तुझ बिन,
मार कर मिट चुके तुझमे ऐसे इन्सान हैं,
ख्वाब तो खिल गए है सुर्ख गुलाब से,
बाग्दोरे जीवन कि अब तो तेरे नाम है...
बिखर तो गया हूँ मोतीयों की तरह
बिखर तो गया हूँ मोतीयों की तरह,
फर्श पर पड़ा हूँ उठा ले तू ज़रा,
राह में तेरी मैं गर्दिश में पड़ा,
सूंघता हुआ उस सोंधी मिट्टी का ज़र्रा,
रख कदम तू कभी निकला था जिस राह पर
,कणों ने छुए थे तेरे वो सुन्दर कदम,
लिपट आज मैं इन कणों में सिमट जाऊँगा,
करता महसूस तेरे क़दमों का अहसास वो अनूठा,
इंतज़ार में मैं किसी ऐसे राही के पड़ा,
मिलने अगर कोई तुझसे इस राह से गुज़रा,
बन उसके क़दमों की गर्दिश लिपट जाऊँगा,
इसी बहाने कम से कम तेरे पास तो आऊंगा,
छोड़ तो गया है मुझको तू तनहा कुछ ऐसे,
ताक़त भी नहीं की खुद उठ के मैं चल दूं,
खुशबू के सहारे तेरी मैं क़दमों को रख दूँ,
थामे तेरी वो महकती डोर को उठ बढ़ चलूँ,
मगर हूँ बिखरा पड़ा फर्श पर कुछ मोतियों के जैसा,
कहाँ से लाऊँ वो हौसला उठ चलने का बता तू ज़रा,
गूँथी थी माला जो तूने मोतियों को पिरो कर,
डोर को तोड़ मोतियों को बिखेर तू खुद ही चल दिया,
तेरे खिंचते तारों से गिर मैं फिसलता चला गया,
बता तू ही अब कैसे पिरोउं मैं खुद को ज़रा,
बिखर तो गया हूँ मोतीयों की तरह,
फर्श पर पड़ा हूँ उठा ले तू ज़रा ॥
फर्श पर पड़ा हूँ उठा ले तू ज़रा,
राह में तेरी मैं गर्दिश में पड़ा,
सूंघता हुआ उस सोंधी मिट्टी का ज़र्रा,
रख कदम तू कभी निकला था जिस राह पर
,कणों ने छुए थे तेरे वो सुन्दर कदम,
लिपट आज मैं इन कणों में सिमट जाऊँगा,
करता महसूस तेरे क़दमों का अहसास वो अनूठा,
इंतज़ार में मैं किसी ऐसे राही के पड़ा,
मिलने अगर कोई तुझसे इस राह से गुज़रा,
बन उसके क़दमों की गर्दिश लिपट जाऊँगा,
इसी बहाने कम से कम तेरे पास तो आऊंगा,
छोड़ तो गया है मुझको तू तनहा कुछ ऐसे,
ताक़त भी नहीं की खुद उठ के मैं चल दूं,
खुशबू के सहारे तेरी मैं क़दमों को रख दूँ,
थामे तेरी वो महकती डोर को उठ बढ़ चलूँ,
मगर हूँ बिखरा पड़ा फर्श पर कुछ मोतियों के जैसा,
कहाँ से लाऊँ वो हौसला उठ चलने का बता तू ज़रा,
गूँथी थी माला जो तूने मोतियों को पिरो कर,
डोर को तोड़ मोतियों को बिखेर तू खुद ही चल दिया,
तेरे खिंचते तारों से गिर मैं फिसलता चला गया,
बता तू ही अब कैसे पिरोउं मैं खुद को ज़रा,
बिखर तो गया हूँ मोतीयों की तरह,
फर्श पर पड़ा हूँ उठा ले तू ज़रा ॥
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