Wednesday, August 22, 2007

कहां है

कहां है, कहां है...
कोहरे का वो एक ठंडा सा अहसास,
वो उसका एक धुन्ध्लापन,
वो उसकी एक चाहत.
समाने को सबकुछ अपने आगोश में,
वो उसका प्यार लेने को बेसब्र,
आगोश में अपने सब कुछ,
कहां है, कहां है!...

कोहरे का वो धीरे धीरे बाहों को फैलाना,
सब कुछ अपने दिल में समाना,
साथ ही चोटी चोटी चमकती हीरे जैसे बूंदों,
का एक शृंगार करना,
कोहरे के आगोश में महसूस करना,
उस प्रेम की गर्माहट को,
ठंडे से अहसास के बीच से,
वो गर्माहट का धीरे से झांकना,
छू लेना दिल की गहराइयों को,
वो उसका प्यार,
वो उसका अहसास,
कहां है, कहां है...

उस प्रिये के तलाश में,
उस प्रिये के इंतज़ार में,
बैठे हम सब राह देखते,
जाने कहां है वो निष्ठुर
जाने कहां है वो निर्मोही,
लगता जैसे अपनी प्रियतम के साथ,
लगता जैसे अपनी प्रियतम के आगोश में...

भूल बैठा हम सबको,
भूल गया हमे वो,
भूल गया प्यार को...

राह देखते हम सब उस निष्ठुर की,
अयीगा कब वो हमारे आगोश में,
वो उसका धुन्ध्लापन...

वो उसका कोमल अहसास,
वो उसकी चाहत,
वो उसका प्यार,
वो उसका अआगोश,
कहां है, कहां है, कहां है...

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