Monday, October 1, 2007

पत्ते मुरझाये ... फूल भी मुरझाये...
गर्म हवाओं का है ये तांडव कैसा,
मुरझाया है हर इन्सान,
दुआ है मेरी बस यही इश्वर से,
रखे तुम जैसे दोस्तो को महफूज़
ना हो कभी तपिश कहीँ जीवन में दूर दूर...

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