Friday, October 5, 2007

लफ्ज़ और हर्फ़ का तो संग है बड़ा पुराना,
सदियों से मिल दोनो ने सैकड़ों सुन्दर गीत है गाया,

ख्वाहिशें और उम्मीदों का मिलन तो है बड़ा ही पुराना,
ख्वाब बुने हैं सुन्दर जब भी एक दूजे ने हाथ है थामा,

ना रही कभी शिक़ायत और गुंजाइश की कोई गुफ़्तगू ,
नाराजगी के लिए ना छोड़ी जगह कहीँ भी कभी भूल,

बुनियाद कैसे रखें हम उन रिश्तों की बता ऐ खुदा,
जिन रिश्तों का तूने खुद ही सदियों पहले है बनाया,

लफ्जों में कर दूँ कैसे बयाँ मैं सब कुछ,
जब तूने वो लफ्ज़ ही इस दुनिया के लिए नही बनाया,

वो लफ्ज़ तो रखे हैं तूने बस खुद के लिए संभाले,
इन्सान को तू तुने ऐसा अछूता ही है बनाया,

पहुँच सका जो कर पार इस दुनिया का मेला,
संभाल उसे गोदी में अपनी गले से तूने लगाया,

लफ्ज़ में कर दूँ कैसे बयाँ मैं सब कुछ,
तुने मुझे जिसका गहराई तक सुन्दर अहसास है दिलाया ॥

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