Friday, February 12, 2016

Beautiful Poem by --निदा फ़ाज़ली--

चलो इस तरह से सजाएँ उसे
ये दुनिया हमारी तुम्हारी लगे।
हम लबों से कह न पाये उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है।
कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है
सब ने इंसान न बनने की क़सम खाई है।
घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।
कभी किसी को मुकम्मल जहां नही मिलता
कही जमीं तो कही आसमां नही मिलता।


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