Sunday, September 30, 2007

जीवन के रंग

विभिन्न रंगो से खिलती ये दुनिया,
श्याम श्वेत में भी बहक जाते ये रंग,
एक एक रंग है दिखाता रंग अपने,
वक़्त के पलटते कुछ पन्नों के संग,

श्वेत रंग में लिप्त कभी मैं,
उजालों के लगा पंख उड़ जाता,
कभी ओढ़ चादर श्याम मैं ऊपर अपने,
डूब जाता समंदर के गर्त में उतर,

सच्चाई में होता झूठ का वास है अक्सर,
झूठ में सच्चाई का ना आभास क्यों होता,
रंग विभिन्न ये बनाए इश्वर ने कैसे,
हर एक रंग है बिखेरता एक अलग ही रंग,

रख गुलाब की पंखुड़ियों पर अधरों को अपने,
लाली भी उसकी ये सुर्ख जला बढ़ जाता,
विष जब उतरता मनुष्य के गले के नीचे,
स्याह नील रंग में रंगता बदन को उसके,

वक़्त के क़दमों पर बिखरते ये रंग,
रंग दुनिया के विभिन्न दिखलाते,
रंगों में डूबी ये कैसे है दुनिया,
रंग रंग के रंग क्या ख़ूब दिखाते,

रंगों की छठा बनाती एक चक्रव्यूह,
तांडव करता मनुष्य भी ना भेद पाता,
शांति प्रेम का प्रतिबिम्ब वो श्वेत भी,
डूब जाता श्याम रंग का कफ़न लपेट,

रंगों की एक एक किरण है फूटती,
वक़्त का पुष्प खोलता पंखुड़ियाँ जब अपनी,
जीवन दान दे जाते कुछ सुन्दर वो रंग,
वहीँ कुछ लाद ले जाते रख जीवन को अपने कंधे,

देखता रह जाता मैं खड़े यूँ ही सोचता,
मनुष्य के कैसे बदलते बदरंग ये रंग,
कभी लग गले गुदगुदा जाता वो मुझको,
कभी दबा गले ले जाता मनुष्यता भी संग,

खिलते प्रकाशमय सूर्य को भी निगलता,
घोर अन्धकार का वो एक श्याम रंग,
घटा बन वही दे जाता जीवन हमें,
बारिश की बूंदों से कर तर वो हमको,

सूर्य को भी डस जाता बन ग्रहण कभी,
शीतलता भी चुरा ले जाता चन्दा के संग,
कैसे निखरते हैं दुनिया के रंग,
जीवन की डोर ने जब थामी इश्वर की पतंग...

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