Sunday, September 30, 2007

प्रकृति

बिछौना तेरा जब धरती बन बैठी,
आसमान बन गया है चादर,
फूल से सजते वो चांद सितारे,
चादर में तेरी सज गए हैं वो,

ओढ़ लिया जब चादर तुने,
समेट प्रकृति को बाहों में,
साथ किसका अब चाहे तू,
नाच रही जब प्रकृति तेरी बाहों में,

परवाह है ना अब साथ किसी के,
राह ना देखें आँखें अब,
प्रीत जब जोडी कायनात से हमने,
कमी हमे फिर कुछ होती भी क्यों,

फूलों को भी सजा रखा है,
चेहरे पर उन्हें बिठा रखा है,
पलकों से चु पंखुड़ियों को,
खुशबू तो दिल में समां रखा है...

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