Sunday, September 30, 2007

बहती थी पवन एक शीतल,
मन को भीतर तक चु जाती,
तारों से भरी वो रात,
चांद था खिला केवल एक,

निहारता जैसे आस में डूबा,
भर लेने को एक तारे को,
खोले वो अपनी आतुर वो बाहें,
घिरा तारों के कायनात में,

समझा था एक तारे ने तभी,
प्रेम अटूट चांदनी का फैला,
बढ़ा क़दम चल पड़ा था वो,
डूबने चांदनी के आगोश में,

अहिस्ते अहिस्ते चल पड़ा था सफ़र में,
चांदनी से मिलने हो आतुर वो,
सदियों से था इंतज़ार जिसको,
कायनात में होने को एक अनोखे मिलान,

नयनों में भर नयनों को डूबते,
करीब आते एक दूजे के अहिस्ते,
फैलाये बाहिने थी चांदनी बुलाती,
तारों की उस सुन्दर कायनात को,

दूरियां थी घट रही अब,
चांद और तारे के बीच,
आ रहे थे करीब एक दूजे के,
आलिंगन में डूब जाने को,

मिलान था कैसा सुहाना वो,
प्रेमियों के यों मिलने का,
मिल गया था चांदनी को,
तलाश थी जिसे उस तारे का,

सदियों का इंतज़ार होने को अंत,
समा गए थे एक दुसरे के आगोश में...

1 comment:

उन्मुक्त said...

प्यारी कवितायें हैं लिखते चलिये।