रात्री अँधेरी बीत गयी है,
सुबह उजियारी आयी अब,
कर ले स्वागत हाथ खोल तू,
खडे खडे क्या निहार रही है,
सौगात लिए वो आयी है,
प्यार तुझे दे देने को,
खोल ज़रा दरवाज़ा तो तू,
खादी रहेगी बाहर क्या वो,
फैला कर बाहें बुला भीतर,
बिठा ज़रा उसे तू करीब अपने,
खातिर दारी तो कर ज़रा तू,
अतिथि तभी तो देवो भव,
देख ले उसमे रुप इश्वर का,
तभी तो तुझसे मिलने है आयी,
नही तो वो भी जा सोती,
आराम से कोमल बिस्तर पर,
प्रकाश का एक पुंज लिए,
प्रकाशित करने जीवन तेरा,
पुष्पों को भी खिला दिया,
अपने सुन्दर आगमन से,
सुगंध से भरते वातावरण को वे,
करते कैसे स्वागत उसका,
तू बैठी क्या सोच रही है,
भर ले उसको बाहों में,
भर देगी वो खुशियों का प्रकाश,
तेरे इस सुन्दर जीवन में,
हंसियों खुशियों का है वो खजाना,
राह में जिसके तू बैठी रही सदा से...
Sunday, September 30, 2007
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