फैलाया आँचल बरखा ने,
ढक लेने को जग सम्पूर्ण,
राह में था मई कुछ दूर,
करीब मेरे वो आयी ख़ूब,
फैलाये आँचल ढकती मुझको,
करीब मेरे लहराती आयी,
केशों को अपने खोल वो सारे,
सूरज को भी धक वो आई,
बन मेरी प्रियतम प्यारी,
बाहों में भरने को आतुर,
केशों ने भर लिया था मुख को,
काली घटा थी कुछ ऐसी छाई,
नन्ही नन्ही बूंदों से आ,
लगा रही थी गले वो मुझको,
आलिंगन कर रही हो जैसे,
मोती जैसे बूंदों में भर,
बंद कर पलकें मई अपनी,
करता रह महसूस मई उसको,
कोमल सा वो स्पर्श था उसका,
जैसे घोल रही हो मीत,
काली काली घटा थी घिरी,
बयार भी शीतल हो चली थी,
आयी थी प्रियतम मिलने मुझसे,
बन बारिश की ठण्डी बूँद,
गले लगाती वो झोंको में,
रोम रोम वो चु जाती,
बरसा रिमझिम बूंदे अपनी
,अहिस्ते अहिस्ते समां जाती,
आत्मा को कर गयी वो तर,
रिमझिम रिमझिम बूंदों में,
समा मुख केशों में अपने,
देख मेरी वो प्रियतम आयी।
Sunday, September 30, 2007
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