Friday, August 24, 2007

निद्रा

एक अलसाये से नींद से
उठने के कोशिश करता हुआ,
अंगडाई लेते हुए,
आने को तैयार,
झाँका जो जाकर बाहर,
खड़ा है एक नया वर्ष तैयार,
है कितना आतुर,
सोया था जो वर्षों से बेकार,
आया है उसका उठने का मौसम इस बार,
बाहें पसारता
आंखें मिल्मिलाता,
अंगडाई लेता,
भगाता अपनी निद्रा को,
कहता उससे ये बार बार,
गुजारा वक़्त बहुत है तेरे साथ,
अब जा तू किसी और के पास,
दुनिया करती इन्तेज़ार मेरा,
जाना है मुझको अब उनके पास,
देख ए मेरी प्रियतम निद्रा,
पूरा विश्वा है कैसा तैयार,
पसारे बाहें अपने कई,
लिए फूलो का हार लिए,
कैसे देखता राह मेरी,
स्वागत करने को तैयार,
बोल तू कैसे तोडूं दिल में इनका,
जा तू अब दूर मुझसे,
जान है मुझे अब इनके पास,
देना है मुझे वो सब कुछ,
देखते ये राह जिसकी बरसों से,
कर ना सका कुछ पहले इसके,
प्रेम में था सोया तेरे में साथ,
जाता हूँ में अब इनसे मिलने,
देख कैसे देख रहे ये मेरी राह,
ना रोक तू मुझे अब
करता हूँ में तुझसे प्यार,
पर होगा अब जाना मुझे
इन प्यारे लोगों के पास!!!

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