Friday, August 24, 2007

चलते ही जाना है

अनजान राहों पर चलते जाना,
समय के टिक टिक के साथ,
घुमते काँटों के बीच,
चाहतों के कश्ती पर हो कर सवार
ना बुझती हुई चाहतों के किश्ती को खेते खेते,
धीरे धीरे चलते हे जाना।
प्रतीक्षा में उस किनारे के,
बुलाता है जो हमे डरकर,
खुली बाँहों में भर लेने को एक संसार,
निगाहों में डूबने का इंतज़ार,
भीगी भीगी पलकों के बीच,
मोतियों का बह जाना,
चाहता है दिल ये कभी कभी,
उन अनमोल मोतियों को संजोना,
कीमत है जिनकी अनमोल,
चले जा रहे हैं हम सभी,
बहे जा रहे हैं हम सभी,
एक अंजन राह पर,
इन अनजानी मंज़िल के ओर,
समय के साथ,
रूक कर एक पल को,
सुस्ताना कभी बीच राह पर,
देखना पलट कर पीछे
छूट गए है कहीँ ख्वाब सब,
इंतज़ार करते किसका तुम,
सब है तुम्हारी बाँहों में वहीँ,
रूक कर दो पल को जो देखो भीतर,
पयोगे संसार एक हँसी उसके बीच,
फैला कर बाँहों को,
भर लो भेतर अपने,
रूक कर सोचो कभी दो पल,
चलना है जिन्दगी के राह पर,
भर कर सब कुछ अपने भीतर,
चलते ही जाना है,
यही तो है जिन्दगी का नाम.

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