यह क्या लहर उठी,
हमें साहिल बाना दिया,
हमको भी तुमने प्यार के,
काबिल बाना दिया।
ना खंजर था इन हाथों में,
ना दुश्मनी थी कोई,
फिर भी ना जाने क्यों हमें,
आपने कातिल बना दिया।
थी मंजिल भी हमारे सामने,
और पांव भी थे थके हुए,
क्यों उसने मेरी रह को,
और मुश्किल बाना दिया।
ये किस के संग ने ,
तराशा है हमें,
कि पत्थर के सीने में भी,
जिसने दिल लगा लिया।
Friday, August 24, 2007
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