Friday, August 31, 2007

दिल भी कैसा रोता है

दिल भी कैसा रोता है,
दिल भी कैसे तड़पता है,
देख दुनिया के ये धोखे,
देख दुनिया का ये रुप,

आंसू कितने दे जाता,
यूँ कभी भर बाहों में,
रुला जाता है कैसे वो,
प्यार में भी कभी डूबा मुझे,

आंसू भी क्यों आते हैं,
प्रेम के संग भी बंधे,
अहसास क्यों होता है हमे,
कभी कभी ऐसे डूबते हुए,

लहरें जब उठी दिल में,
एक समंदर सा उफनता क्यों,
प्रेम की गहराइयों को चूता जब,
मोती कैसे उमड़ जाते आंखों में,

कैसे ये दुनिया है इश्वर,
किअसे है लोग यहाँ,
क्यों है अराजकता का ये माहौल,
क्यों नही कद्र प्रेम के जैसे,

रोता रह मुख भर हाथों में,
आंसू का एक तूफ़ान था वो,
कुछ निकल रहे थे आंखों से मेरी,
लहू भी बहता दिल को भेद जैसे,

रूह भी तड़प रही थी मेरी,
इश्वर से कर फरियाद जोडे ये हाथ,
सज़ा थी क्यों मिली मुझसे ऐसे,
किया क्या था बुरा मैंने इन्सान का कभी,

दिया जो दे सका इस जीवन में मैंने,
ना माँगा कभी कुछ तुझसे भी दरकार,
फिर भी ये दुखों के दरिया में,
क्यों लगा दुबकी नहलाया था तुने मुझे,

मिली क्यों ये सज़ा मुझे इश्वर,
क्यों था तडपा दिल मेरा ऐसे,
क्यों थे आंसू गिरे आंखों से मेरी,
क्यों हुआ ख़ून का बहाव दिल में ऐसे,

प्रेम के सिवा तो ना दिया मैंने कभी,
ना दुखाया दिल भी कभी मैंने,
फिर भी मिली ऐसे सज़ा क्यों इश्वर,
क्यों तड़प रह मेरी रूह तू ऐसे...

1 comment:

Shastri JC Philip said...

"कैसे ये दुनिया है इश्वर,
किअसे है लोग यहाँ,
क्यों है अराजकता का ये माहौल,
क्यों नही कद्र प्रेम के जैसे,"

जब मैं और आप बदलेंगे,
तब यह स्थिति बदलने
लगेगी दोस्त -- शास्त्री जे सी फिलिप

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