Sunday, October 7, 2007

वक़्त तो है यहीं कहीँ,
बीच हमारे रहता यहीं,
बस हम ना पहचान पाते,
बस हम ना थाम पाते,

खोल जो चक्षु अपने आज,
पायेगी वहीँ तू आस पास,
बस्ता हु मैं वहीँ कहीँ,
आत्मा में तेरी रहता वही,

वक़्त में है रखा क्या,
जीवन में है बचा क्या,
फैला सुन्दर एक संसार तू,
स्वागत कर इसका मुस्कुरा तू,

बस यूं ही रह तू खुश,
आत्मा में ऐसे बस जा तू,
अलग ना कोई कर सके,
एक दूजे में ऐसे बस जा तू,

आत्मा जिस दिन पहचानेगी,
अपने को जब तू जानेगी,
इश्वर को सानिध्य मानेगी,
पायेगी सब कुछ चाहेगी,

विश्वास ज़रा तू कर तो ले,
एक बार ज़रा तू जीं तो ले,
जीवन तो है भीतर कहीँ,
आत्मा में तेरी समाया वहीँ,

खोल दे अपनी बाहें आज,
मूँद तेरी ये आंखें आज,
कर उंगलियों को ढीला तू,
देख तेरी आत्मा है कहॉ,

जनेगी पहचानेगी जब,
अपनी आत्मा जगाएगी जब,
जीवन के एक नयी सुबह,
स्वागत करेगी तेरा तब,

जीवन तो होगा प्रारम्भ तभी,
जगयेगी जब तू आत्म अपनी,
वहीँ कहीँ तो बस्ती है,
देख जरा तू छू कर देख ...

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