Sunday, October 7, 2007

उजली सफेद कोमल परी से,
फैलाती पंखों को,
मुस्कुराती हुई,
आती है जो तू उड़ते हे,
मन भी है खिलने लगता,
कर महसूस पद्चापें तेरी,
मुस्कराते है बस जाती,
बनने को धड़कन मेरी,
तेरे आने से है खिल जता,
दिल जैसे एक सुन्दर कली
।सुन्दर तो है मन वो तेरा,
करती महसूस आत्मा जिसे,
ना है जान पहचान कोई,
दिखावटी इस संसार में,
फिर भी है मिलते दिल कैसे,
बिछडे हो सदियों से जैसे,
इस चोटी सी दुनिया में वर्ना,
है रखा ही क्या।
होंठों को हिला कर,
जब तू मुस्कुराती है,
आती है एक अंधी कहीं,
झाङती फूलों की लदी
संभालना मुझे तू जरा,
उड़ ना जाओं मै कहीं,
लिप्त अन्धियों में तेरी॥
खामोशी तो है कह देती इतना,
शब्द भी ना जो कह पते हैं,
जरोरत तुझे क्या है इन लंग्दों के,
खामोशी हे जब सब कह जाती है,
उस पर तेरी ये अनमोल हँसे,
दीवाना बनाए जाती है,
अफ़सोस क्यो करती है तू,
सखी तेरी जो खामोशी है,
लग जाने दे खामोशी को गले,
खामोशी के ये ज़ुबानी है,
उस पर से तेरी वो मनमोहक हंसी,
क्या कुछ और अभी बाकी है

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