Monday, February 15, 2016

उस चंद सिक्कों से कहाँ सुकूं मिलता है,
वोह खजाना-इ-कुबेर फखत चाहता है,
कुछ गिने चुने फल नहीं पसंद उसको,
वो तो पूरा दरख़्त चाहता है,
उसको मेरी जुबान पर यकीन कब हैं,
वोह कोरे कागज़ पर मेरे दस्तखत चाहता है. 

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