Sunday, October 7, 2007

वक़्त तो है यहीं कहीँ,
बीच हमारे रहता यहीं,
बस हम ना पहचान पाते,
बस हम ना थाम पाते,

खोल जो चक्षु अपने आज,
पायेगी वहीँ तू आस पास,
बस्ता हु मैं वहीँ कहीँ,
आत्मा में तेरी रहता वही,

वक़्त में है रखा क्या,
जीवन में है बचा क्या,
फैला सुन्दर एक संसार तू,
स्वागत कर इसका मुस्कुरा तू,

बस यूं ही रह तू खुश,
आत्मा में ऐसे बस जा तू,
अलग ना कोई कर सके,
एक दूजे में ऐसे बस जा तू,

आत्मा जिस दिन पहचानेगी,
अपने को जब तू जानेगी,
इश्वर को सानिध्य मानेगी,
पायेगी सब कुछ चाहेगी,

विश्वास ज़रा तू कर तो ले,
एक बार ज़रा तू जीं तो ले,
जीवन तो है भीतर कहीँ,
आत्मा में तेरी समाया वहीँ,

खोल दे अपनी बाहें आज,
मूँद तेरी ये आंखें आज,
कर उंगलियों को ढीला तू,
देख तेरी आत्मा है कहॉ,

जनेगी पहचानेगी जब,
अपनी आत्मा जगाएगी जब,
जीवन के एक नयी सुबह,
स्वागत करेगी तेरा तब,

जीवन तो होगा प्रारम्भ तभी,
जगयेगी जब तू आत्म अपनी,
वहीँ कहीँ तो बस्ती है,
देख जरा तू छू कर देख ...
उजली सफेद कोमल परी से,
फैलाती पंखों को,
मुस्कुराती हुई,
आती है जो तू उड़ते हे,
मन भी है खिलने लगता,
कर महसूस पद्चापें तेरी,
मुस्कराते है बस जाती,
बनने को धड़कन मेरी,
तेरे आने से है खिल जता,
दिल जैसे एक सुन्दर कली
।सुन्दर तो है मन वो तेरा,
करती महसूस आत्मा जिसे,
ना है जान पहचान कोई,
दिखावटी इस संसार में,
फिर भी है मिलते दिल कैसे,
बिछडे हो सदियों से जैसे,
इस चोटी सी दुनिया में वर्ना,
है रखा ही क्या।
होंठों को हिला कर,
जब तू मुस्कुराती है,
आती है एक अंधी कहीं,
झाङती फूलों की लदी
संभालना मुझे तू जरा,
उड़ ना जाओं मै कहीं,
लिप्त अन्धियों में तेरी॥
खामोशी तो है कह देती इतना,
शब्द भी ना जो कह पते हैं,
जरोरत तुझे क्या है इन लंग्दों के,
खामोशी हे जब सब कह जाती है,
उस पर तेरी ये अनमोल हँसे,
दीवाना बनाए जाती है,
अफ़सोस क्यो करती है तू,
सखी तेरी जो खामोशी है,
लग जाने दे खामोशी को गले,
खामोशी के ये ज़ुबानी है,
उस पर से तेरी वो मनमोहक हंसी,
क्या कुछ और अभी बाकी है
दिल की हालत बताते क्यों हो,
शब्दों को नीचा दिखाते क्यों हो,
तङपाने में रखा है क्या,
जीवन भी तो है इक तड़प,
इस आवाज़ में रखा है क्या,
दिलों की आवाज़ जो सुनो,
बहाने खोजते क्यों हो,
दिलों में उतरना चाहते जो हो...

Friday, October 5, 2007

अभी अभी तो पड़े थे खुशनुमा से ये कदम,
ज़मीन ने भी तो सूंघा था इन्हें सीने में भर,

एक लम्हे में बढ़े थे छू लेने को हम आसमान,
और दूजे ही लम्हे समां गया बाहों में वो मेरे,

सुनसान राहों पर रखे थे हमने ये कदम,
और कुछ लम्हों में ही एक कारवाँ सा बन गया,

अंगड़ायी ले वक़्त ने बदली करवटें कुछ ऐसे,
अहिस्ते से हमने उस आसमान को आज छू लिया,

मिचमिचायी सी ये आँखें खुलने की कोशिश में थी,
हाथों में भर इन्हें हम मल ही तो रहे थे,

आफताब की ज़ौ ने गले से हमे कुछ यूँ लगा लिया,
चूम कर अफाक ने एक नया सा आगाज़ भी कर दिया,

वक़्त ये सुहाना कुछ ऐसा बाहों में गुज़र गया,
पता भी ना चला कब ये हमें चूम कर खुद बिखर गया,

मंज़िल की तलाश में तो हम बस यूँ ही चले थे,
वक़्त कुछ ऐसा खुशनुमा सरपट सा गुज़र गया

पलकों को जैसे बंद कर बस एक बार झपकायी हो मैंने,
दूजे ही पल लो मंज़िल हमसे खुद रूबरू मिलने आ गयी ॥
लफ्ज़ और हर्फ़ का तो संग है बड़ा पुराना,
सदियों से मिल दोनो ने सैकड़ों सुन्दर गीत है गाया,

ख्वाहिशें और उम्मीदों का मिलन तो है बड़ा ही पुराना,
ख्वाब बुने हैं सुन्दर जब भी एक दूजे ने हाथ है थामा,

ना रही कभी शिक़ायत और गुंजाइश की कोई गुफ़्तगू ,
नाराजगी के लिए ना छोड़ी जगह कहीँ भी कभी भूल,

बुनियाद कैसे रखें हम उन रिश्तों की बता ऐ खुदा,
जिन रिश्तों का तूने खुद ही सदियों पहले है बनाया,

लफ्जों में कर दूँ कैसे बयाँ मैं सब कुछ,
जब तूने वो लफ्ज़ ही इस दुनिया के लिए नही बनाया,

वो लफ्ज़ तो रखे हैं तूने बस खुद के लिए संभाले,
इन्सान को तू तुने ऐसा अछूता ही है बनाया,

पहुँच सका जो कर पार इस दुनिया का मेला,
संभाल उसे गोदी में अपनी गले से तूने लगाया,

लफ्ज़ में कर दूँ कैसे बयाँ मैं सब कुछ,
तुने मुझे जिसका गहराई तक सुन्दर अहसास है दिलाया ॥

Monday, October 1, 2007

फैला दुखों का एक अथाह समंदर,
दुनिया सार्री जैसे डूब गयी,
इसकी बाह्य सुन्दरता में,
बस कर दुनिया ये लीं हो गयी,

जा फंसा था में एक दिन,
निकलने की कोशिश में इससे,
हाथ पर मई तड़प चलाने लगा,
ऊपर आ थोडा सा में उतराने लगा,

किश्ती आयी एक नज़र करीब मुझे,
सुख साधनों से सुसज्जित तैरती,
कारवां लोगों का था सवार इसमे,
आनंदित से दिख रहे थे सभी नर और नारी,

हिला हिला हाथ मुझे बुलाने लगे,
आने को मुझे वो ललचाने लगा,
दुखों को अपने छिपा भीतर समेट,
बाहर से वो मुस्कुराने लगे,

दिल में आये कुछ विचार मेरे भी,
किश्ती में हो सवार सुख भोगने के,
सुखों के भीतर छिपा दर्द महसूस किया,
मुस्कुराते हुए भी उन्हें रोते हुए देखा,

कर अनदेखा उन्हें में छोड़ पीछे,
बढ़ चल कुछ और आगे मई तैरता हुआ,
सनाता सा दिख रह था चारों ओरे,
दुखों के कल के सिवा कुछ और ना दिखा मुझे,

दुबकी मैंने एक गहरी तभी लगा ली,
भीतर की दुनिया तब मेरे सामने आ गयी,
भाव्नाये कई थी तैरती डूबी वहाँ,
अहिस्ते अहिस्ते करीब वो मेरे आती गयीं,

तलहटी में उसकी उतरता मई गया,
कुछ सीपियों को मैंने पाय वहां,
खोल उन्हें देखा तो दंग राग गया,
अनंद का एक सुन्दर मोती मुझे मिल गया,

दुनिया की रीत समझ तब आयी,
दुखों के समंदर में जब दुबकी लगाई,
डूब कर जा लगा तलहटी में जब,]
सुखों के समंदर का मोती मिल गया,

इश्वर को कर महसूस मई लालायित हो उठा,
परे दुनिया के सुखों से महसूस कुछ किया,
सुकून एक शीतल सा मुझे मिल गया,
इश्वर को जैसे मैंने आज पा लिया
पत्ते मुरझाये ... फूल भी मुरझाये...
गर्म हवाओं का है ये तांडव कैसा,
मुरझाया है हर इन्सान,
दुआ है मेरी बस यही इश्वर से,
रखे तुम जैसे दोस्तो को महफूज़
ना हो कभी तपिश कहीँ जीवन में दूर दूर...
दुआ तो करते है हम सुबह शाम,
ना कोई आंसू हो ना हो कोई तकलीफ
हो तो बस सदा खुशियों का बसेरा,
सुबह हो हर रोज़ एक नयी,
जीवन में कभी कोई शाम ना हो...
रहो जमीं पे मगर आसमां का ख्वाब रखो
तुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखो
खड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभी
उभर रहा जो सूरज तो धूप निकलेगी
उजालों में रहो, मत धुंध का हिसाब रखो
मिले तो ऐसे कि कोई न भूल पाये तुम्हें
महक वंफा की रखो और बेहिसाब रखो
अक्लमंदों में रहो तो अक्लमंदों की तरह
और नादानों में रहना हो रहो नादान
सेवो जो कल था और अपना भी नहीं था,
दोस्तोंआज को लेकिन सजा लो एक नयी पहचान से

लेखक :-

दीप्ति रस्तोगी

दोस्ती

दोस्ती नाम नहीं सिर्फ़ दोस्तों के साथ रेहने का..
दोस्ती नाम नहीं सिर्फ़ दोस्तों के साथ रेहने का..
बल्कि दोस्त ही जिन्दगी बन जाते हैं,
दोस्ती में..जरुरत नहीं पडती,
दोस्त की तस्वीर की.देखो
जो आईना तो दोस्त नज़र आते हैं,
दोस्ती में..येह तो बहाना है
कि मिल नहीं पाये दोस्तों से आज..
दिल पे हाथ रखते ही एहसास उनके हो जाते हैं,
दोस्ती में..नाम की तो जरूरत हई नहीं पडती
इस रिश्ते मे कभी..पूछे नाम अपना ओर,
दोस्तॊं का बताते हैं,
दोस्ती में..कौन केहता है कि
दोस्त हो सकते हैं जुदा कभी.
.दूर रेह्कर भी दोस्त,
बिल्कुल करीब नज़र आते हैं, दोस्ती में..
सिर्फ़ भ्रम हे कि दोस्त होते ह अलग-अलग..
दर्द हो इनको ओर, आंसू उनके आते हैं ,
दोस्ती में..माना इश्क है
खुदा, प्यार करने वालों के लिये
"अभी"पर हम तो अपना सिर झुकाते हैं,
दोस्ती में..ओर एक ही दवा है
गम की दुनिया में क्युकि..भूल के सारे गम,
दोस्तों के साथ मुस्कुराते हैं,
दोस्ती दोस्ती नाम नहीं सिर्फ़
दोस्तों के साथ रेहने का..
बल्कि दोस्त ही जिन्दगी बन जाते हैं,
दोस्ती में..जरुरत नहीं पडती,
दोस्त की तस्वीर की.देखो जो
आईना तो दोस्त नज़र आते