क्या खूब लिखा
है किसी ने
गरीबी से उठा हूँ,गरीबी का दर्द जानता हूँ,
आसमाँ से ज्यादा जमीं की कद्र जानता हूँ।
लचीला पेड़ था जो झेल गया आँधिया,
मैं मगरूर दरख्तों का हश्र जानता हूँ।
मजदूर से अफसर बनना आसाँ नहीं होता,
जिन्दगी में कितना जरुरी है सब्र जानता हूँ।
मेहनत बढ़ी तो किस्मत भी बढ़ चली,
गरीबी से उठा हूँ,गरीबी का दर्द जानता हूँ,
आसमाँ से ज्यादा जमीं की कद्र जानता हूँ।
लचीला पेड़ था जो झेल गया आँधिया,
मैं मगरूर दरख्तों का हश्र जानता हूँ।
मजदूर से अफसर बनना आसाँ नहीं होता,
जिन्दगी में कितना जरुरी है सब्र जानता हूँ।
मेहनत बढ़ी तो किस्मत भी बढ़ चली,
छालों
में
छिपी
लकीरों
का
असर
जानता
हूँ।
सब कुछ पाया पर अपना कुछ नहीं माना,
क्योंकि आखिरी ठिकाना मैं अपनी कब्र जानता हूँ।।सब कुछ पाया पर अपना कुछ नहीं माना,
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