Tuesday, August 16, 2016

क्या भला मुझ को परखने का नतीज़ा निकला ;
 ज़ख़्म-ए-दिल आप की नज़रों से भी गहरा निकला;

 तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने;
तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला;

 तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह होंठों पर;
डूब कर भी तेरे दरिया से मैं प्यासा निकला।

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