Friday, August 31, 2007

आंसुओं में ना खोजो

आंसुओं में ना खोजो तुम,
खुशियों का समंदर कहीँ,
खुशियाँ भी तो है बिछी,
राहों में तेरी वहीँ,

बेवफा तो ये ज़माना भी है,
बेवफा ये ज़िन्दगानी ठहरी,
छोड़ चले साथ कब वो,
किसी को भी मालूम नही,

चाह था उसे तुने दिल से,
करती क्यों है उम्मीद फिर,
वफ़ा के मिल जाने की,
बची कहॉ वफ़ा अब इस जमाने में,

क्या देगा वो तुझे यहाँ,
हुआ जो कंगाल जमाने में,
खुशिया हो या फिर वो दुःख,
चुने हैं सारे तुने खुद-बीए-खुद,

सुन लिया तुने हाले-दिल-उसका,
पी गयी हर एक आंसू अपने,
निकल बाहर दुःख के दरिया से,
उफान रह समंदर खुशियों का सामने तेरे,

ना मार तू खुद को औरों के लिए,
ना कर तौहीन उस जीवन की,
दिया खुदा ने तुझे ना किसी और के लिए,
दिया है तुझे हस उसमे जीने के लिए...

दिल भी कैसा रोता है

दिल भी कैसा रोता है,
दिल भी कैसे तड़पता है,
देख दुनिया के ये धोखे,
देख दुनिया का ये रुप,

आंसू कितने दे जाता,
यूँ कभी भर बाहों में,
रुला जाता है कैसे वो,
प्यार में भी कभी डूबा मुझे,

आंसू भी क्यों आते हैं,
प्रेम के संग भी बंधे,
अहसास क्यों होता है हमे,
कभी कभी ऐसे डूबते हुए,

लहरें जब उठी दिल में,
एक समंदर सा उफनता क्यों,
प्रेम की गहराइयों को चूता जब,
मोती कैसे उमड़ जाते आंखों में,

कैसे ये दुनिया है इश्वर,
किअसे है लोग यहाँ,
क्यों है अराजकता का ये माहौल,
क्यों नही कद्र प्रेम के जैसे,

रोता रह मुख भर हाथों में,
आंसू का एक तूफ़ान था वो,
कुछ निकल रहे थे आंखों से मेरी,
लहू भी बहता दिल को भेद जैसे,

रूह भी तड़प रही थी मेरी,
इश्वर से कर फरियाद जोडे ये हाथ,
सज़ा थी क्यों मिली मुझसे ऐसे,
किया क्या था बुरा मैंने इन्सान का कभी,

दिया जो दे सका इस जीवन में मैंने,
ना माँगा कभी कुछ तुझसे भी दरकार,
फिर भी ये दुखों के दरिया में,
क्यों लगा दुबकी नहलाया था तुने मुझे,

मिली क्यों ये सज़ा मुझे इश्वर,
क्यों था तडपा दिल मेरा ऐसे,
क्यों थे आंसू गिरे आंखों से मेरी,
क्यों हुआ ख़ून का बहाव दिल में ऐसे,

प्रेम के सिवा तो ना दिया मैंने कभी,
ना दुखाया दिल भी कभी मैंने,
फिर भी मिली ऐसे सज़ा क्यों इश्वर,
क्यों तड़प रह मेरी रूह तू ऐसे...

Tuesday, August 28, 2007

शायद मैं ही था

कभी- कभी
मै खुद नही समझ पाता कि
मै कौन हूँ,
क्या हूँ ।

गीली मिट्टी में
घरौंदा बनाने मे उलझा,
मिट्टी पर कदमों
के निशान छोडकर,
तुम्हारे बहुत दूर निकल जाने पर,
अपना मन सँभाले,
उन कदमों पर कदम धरता,
हाँफता- दौडता तुम्हे ढूँढता
शायद मैं ही था ।

या तुम्हारी स्मृति मे खोया
मै ही हूँ
।दरवाज़े की ऒट मे खडा
उदास, निराश,
निर्निमेष पलकों से झाँकता भी
मैं ही था॰॰॰॰॰॰

Friday, August 24, 2007

चल ऐ इन्सान समां जाएँ आज

चल ऐ इन्सान समां जाएँ आज,
दे दे बाहें अपनी भर बाहों में मेरी,
आलिंगन कर डूब जायें आज हम कुछ ऐसे,
आज मैं तुझमे और तू डूब जाये मुझमें,

आलिंगन हो दुनिया का अनोखा सम्पूर्ण,
दुनिया भी रह जाये देखती नि:शब्द,
चल आज कर ले आलिंगन कुछ ऐसा,
रच दें परिभाषा आलिंगन की एक नयी,

चाह्चहआहटों से भर जाये वन उपवन,
चिडियों का हो छाया घनेरा कुछ ऐसा,
संगीत से उनके गूँज उठे कुदरत का हर एक कोना
कोयल की कूक से खिल नाच उठे जीव सारे,

खिल जाये पत्ता पत्ता थाम कली को भी डाली,
नाच उठे हर एक पशु वन में हो मदमस्त,
चल पड़े बयार भी हवा की कुछ ऐसे,
वातावरण भी मुस्कुरा उठे खिलखिला कुछ आज,

चल आ कर लें आज हम आलिंगन कुछ ऐसे,
नदियों में भी आ जाये कुछ ऐसे बल,
लहरा कर चल पड़े जैसे एक मदमस्त भंवर,
पुष्पों के नशीले अधरों पर रख अपने वो अधर,

लहराती बलखाती क़मर हो जैसे सुंदरी,
जाती हो पनघट पर लिए अपनी मटकी,
बहते हुए जल में भी आ जाये ऐसी एक खुमारी,
बहाव में हो एक नृत्य का आलिंगन करती वो प्यारी,

चल कर लें आलिंगन हम इंसानियत का आज,
दबोच आज अपनी बाहों में कुछऐसे,
लग जायें हम गले उसके खींच सीने में अपने,
समा लेने दे आज मुझे इंसानियत को खुद में,

चल आ कर ले आलिंगन आज कुछ ऐसे,
आ जाये खुदा भी धरती पर देखने ये मंज़र,
संगम इंसानियत का मनुष्य में समाता,
आलिंगन कुछ ऐसा खिल जायं जिसमें डूबें हम सारे ॥

निद्रा

एक अलसाये से नींद से
उठने के कोशिश करता हुआ,
अंगडाई लेते हुए,
आने को तैयार,
झाँका जो जाकर बाहर,
खड़ा है एक नया वर्ष तैयार,
है कितना आतुर,
सोया था जो वर्षों से बेकार,
आया है उसका उठने का मौसम इस बार,
बाहें पसारता
आंखें मिल्मिलाता,
अंगडाई लेता,
भगाता अपनी निद्रा को,
कहता उससे ये बार बार,
गुजारा वक़्त बहुत है तेरे साथ,
अब जा तू किसी और के पास,
दुनिया करती इन्तेज़ार मेरा,
जाना है मुझको अब उनके पास,
देख ए मेरी प्रियतम निद्रा,
पूरा विश्वा है कैसा तैयार,
पसारे बाहें अपने कई,
लिए फूलो का हार लिए,
कैसे देखता राह मेरी,
स्वागत करने को तैयार,
बोल तू कैसे तोडूं दिल में इनका,
जा तू अब दूर मुझसे,
जान है मुझे अब इनके पास,
देना है मुझे वो सब कुछ,
देखते ये राह जिसकी बरसों से,
कर ना सका कुछ पहले इसके,
प्रेम में था सोया तेरे में साथ,
जाता हूँ में अब इनसे मिलने,
देख कैसे देख रहे ये मेरी राह,
ना रोक तू मुझे अब
करता हूँ में तुझसे प्यार,
पर होगा अब जाना मुझे
इन प्यारे लोगों के पास!!!

ये अल्फाज़

सुबह के ये सुनहरी किरण,
एक पैगाम ले कर है आयी आज,
सीने से लग गया में उनके,
हो गया मदहोश में आज,
छू कर उन अधरों को,
जैसे बितायी हो लंबी वो रात,
किसी मधुशाला के बीच,
मदिरा तो दे ना पायी नशा वो,
पिलाया जो तुमने अधरों के जाम,
प्याले में उड़ेल कर,
शब्दों की मदिरा को,
रख दिया जो अधरों पर तुने,
नशा हुआ क्या है आज हमको,
लगाया जो सीने से आज,
दुनिया ने कहा है जो,
सर आंखों पर रखा है वो,
इजाज़त जो दीं है उसने आज,
कर ली मोहब्बत अल्फाजों से तुम में,
अल्फाजों का है लम्बा सलाम,
मोहब्बत की है हमने अल्फाजों से,
अल्फाजों का है ये लम्बा सफ़र,
ये अल्फाज़ जो है हम दोनो के बीच,
मोहब्बत है हमको इनसे इन्तेहा,
देते ये साथ मेरा,
जिन्दगी की हर राह पर,
बेरहम नही कोई इस जहाँ में,
प्यारे है लोग सारे यहाँ,
जन्मों में क्या रखा है,
आत्माओं का मिलान हो गया जो आज,
सदिया गुजरी पहले कितनी,
सदिया चाहे गुजरे जितनी,
आत्माओं का मिलान हो गया जो आज,
सदियों से सदियों तक,
मोहब्बत नही मरती है आज.

चलते ही जाना है

अनजान राहों पर चलते जाना,
समय के टिक टिक के साथ,
घुमते काँटों के बीच,
चाहतों के कश्ती पर हो कर सवार
ना बुझती हुई चाहतों के किश्ती को खेते खेते,
धीरे धीरे चलते हे जाना।
प्रतीक्षा में उस किनारे के,
बुलाता है जो हमे डरकर,
खुली बाँहों में भर लेने को एक संसार,
निगाहों में डूबने का इंतज़ार,
भीगी भीगी पलकों के बीच,
मोतियों का बह जाना,
चाहता है दिल ये कभी कभी,
उन अनमोल मोतियों को संजोना,
कीमत है जिनकी अनमोल,
चले जा रहे हैं हम सभी,
बहे जा रहे हैं हम सभी,
एक अंजन राह पर,
इन अनजानी मंज़िल के ओर,
समय के साथ,
रूक कर एक पल को,
सुस्ताना कभी बीच राह पर,
देखना पलट कर पीछे
छूट गए है कहीँ ख्वाब सब,
इंतज़ार करते किसका तुम,
सब है तुम्हारी बाँहों में वहीँ,
रूक कर दो पल को जो देखो भीतर,
पयोगे संसार एक हँसी उसके बीच,
फैला कर बाँहों को,
भर लो भेतर अपने,
रूक कर सोचो कभी दो पल,
चलना है जिन्दगी के राह पर,
भर कर सब कुछ अपने भीतर,
चलते ही जाना है,
यही तो है जिन्दगी का नाम.

चाहत

हर पल तुझे ख्वाबों मे देखा,
अब हकीकत मे पाने कि चाहत है.

पास आकर तुम्हारे,
कुछ लम्हे चुराने कि चाहत है.

लगा के अपने सीने से तुम्हे,
यह जिन्दगी जीने कि चाहत है.

लेकर तुम्हे अपनी बाँहों मे,
यह जहाँ बदलने कि चाहत है.

ना जाने कितने आंसू बहे तेरे इंतज़ार मे,
पर अब तेरे संग मुस्कुराने कि चाहत है.

अपनी हर एक ख़ुशी तेरे नाम कर,
तेरे सारे गम अपनाने कि चाहत है.

छुप-छुप के तुझे देखा तो बहुत मैंने,
अब तेरी नजरो से नज़र मिलाने कि चाहत है.

तुम तो बस चुके हो इस दिल मे,
पर अब तेरे दिल मे धड़कने कि चाहत है.

मिटाकर फासले सभी,
दिल से दिल मिलाने कि चाहत है.

बहुत कुछ कह गया यह दिल मेरा,
बस अब कुछ तुमसे सुनने कि चाहत है.

दोस्त

कुछ दोस्त ऐसे होते हैं ,
जो दिल मैं बस जाते हैं.
जो जिन्दगी कि राहों मैं ,
हम से बिछड़ जाते हैं।

कुछ दोस्त ऐसे होते हैं ,
जो रात मैं याद आते हैं.
और रातों कि तन्हाई मे रुलाते हैं।

कुछ दोस्त ऐसे होते हैं ,
जो फूलों कि तरह होते हैं.
जो खुद तो चले जाते हैं,
पेर अपनी महक छोड़ जाते हैं।

कुछ दोस्त ऐसे होते हैं ,
जो जिन्दगी तोड़ देते हैं.
पर जिन्दगी कि राहों मे तनहा छोड़ देते हैं.

कुछ दोस्त ऐसे होते हैं,
जो चांद कि तरह होते हैं ,
जो दाग तो बहुत रखते हैं
पर खुबसुरत नज़र आते हैं.

कुछ दोस्त ऐसे होते हैं ,
जो पत्थर का दिल रखते हैं ,
जो शीशा-ए-दिल तोड़ जाते है,,,,,,,,,,,

तुम...इन सुब में अनमोल हो..

जो बीत गयी सो बात गयी

जीवन मैं एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया

अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे,
जो छूट गए फिर कहां मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गयी सो बात गयी

जीवन मैं वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुवन कि छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाई कितनी बल्ल्रियां
जो मुरझायी वोह फिर कहां खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गयी सो बात गयी

जीवन मैं मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय के आंगन को देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिटटी मैं मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गयी सो बात गयी

मृदु मिटटी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आये हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट है
मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
व कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गयी सो बात गयी।


कविकार,
हरिवंश राय बच्चन

कौन

यह क्या लहर उठी,
हमें साहिल बाना दिया,
हमको भी तुमने प्यार के,
काबिल बाना दिया।

ना खंजर था इन हाथों में,
ना दुश्मनी थी कोई,
फिर भी ना जाने क्यों हमें,
आपने कातिल बना दिया।

थी मंजिल भी हमारे सामने,
और पांव भी थे थके हुए,
क्यों उसने मेरी रह को,
और मुश्किल बाना दिया।

ये किस के संग ने ,
तराशा है हमें,
कि पत्थर के सीने में भी,
जिसने दिल लगा लिया।

Thursday, August 23, 2007

जो चले गए

दीवाने थे वो,
जो चले गए…
बाहें खोली आँखें मूंदे,
मौत लगे जो भायावाह हमे,
बनायी प्रियतम दीवानों ने,
सर रखा गोदी में उसकी,
गले लगाया प्रियतम को,
अभिषेक किया जो प्रीतम ने,
चूमा माथा और सीना चौड़ा,
चले गए वो चले गए

हँसे हंसते गए वो वीर…
किया प्रेम टूट कर दीवानों ने,
दी आहुति प्राणों की,
आजादी को गले लगाने कू,
गले लगाया मौत को फिर,
प्रेम था महान उनका क्या खूब…

एक तरफ थी मौत खडी
दूजी ओरे थी आजादी रंगीन,
एक को था चुनना लेकिन,
आजादी या मौत खादी,
दोने ही थी प्रियतम हसीं,
चुनी आख़िर उन्होने एक,
लगाया मौत गले से अपने…

बना कर मौत को प्रियतम अपनी,
चोद चले वो प्रियतम एक,
आजादी थी प्यारी उनको,
दिल के थी वो कितने करीब
फिर भी छोड़ कर जाना था,
छोड़ चले वो दीवाने क्या खूब…

विडम्बना थी ये भी क्या खूब,
छोड़ गए वो प्रियतम एक,
जाने को एक प्रियतम साथ,
छोड़ गए वो आजादी यहाँ,
मौत को लगा गले वो वीर.

दर्द

कहीं तनहाई…
कहीं जुदाई…
कहीं शरीर…
कहीं आत्म…

क्यों है ये समंदर दर्द का ?
क्यों हर शक्स परेशा सा दिखता है ?
क्यों है उदासियाँ उतरती दिलो में कही ?

एक दिन जो हुआ सामना इससे पूछ बैठ में नादाँ...

क्यों आते हो तुम,
बसने को हमारे बीच,
क्या मिली नही तुम्हे,
रहने को जगह कोई और ?

है इतना बड़ा जो ये ब्रह्माण्ड,
जा कर क्यों नही रहता,
कहीं तू शांत,
क्यों है करता परेशान ?
मेरे बंधुवों को तू शैतान !

आंखें हुई नम उसकी,
अन्स्सो दो चालाक गए उसके,
रोता हुआ वो बोला मुझे…

ए बंधु क्या करूं में !

दर्द हूँ मई बाहर से भीतर,
दर्द है भरा मुझमे जग का सारा,
इस दर्द की पीधा से तड़पता हूँ,
आता हूँ इंसानों की बीच,
तलाशता में सदियों से कहीं…

कोई तो इन्सान मिलेगा कभी,
देने को एक सुकून कहीं,
देगा कुछ खुशियाँ,
देगा कुछ मुस्कुराह्तें,
क्या है मेरा नसीब !

तड्पना ता-जिन्दगी…
क्या दर्द को है हक नही,
मुस्कुराने का कभी...
क्या होगी ये तलाश ख़त्म कभी,
मिलेगा क्या वो इंसा कभी...

जिस दिन आएगी मिलने वो

दिल में चुपाओ तस्वीर को जितना…
कुछ छिपाता नही,
दिल तो है एक आइना,
दिखला देता है सब कुछ खोल कर,
चुराओ जितनी भी नज़रें जमाने से,
बचती नही कोई नज़र इस जमाने से..

जिन्दगी बचाने के जरूरत ही क्या है,
जिस दिन आएगी मिलने वोह हमसे…
उस दिन जिन्दगी खुद उठ जायेगी सामने उनके,
मर के दफ़न भी हो गए जो एक कब्र में,
उठ बैठेंगे कब्र से निकल कर उस दिन,
सामने जो होंगे मेरे वोह…

जिन्दगी भी जिंदा हो जायेगी उस दिन,
खेत लह लाएंगे चारों ओरे,
फूल खिलेंगे हर एक बाग़ में,
रोशन होगा जग ये सारा उस दिन,
गीत गायेंगी कोयल मधुर,
उठ बैठेंगे हम कब्र से निकल कर,
मिलने को आतुर हो उनसे,
कब्र भी ना रोक पायेगी उस दिन हमे,
जिन्दगी बचा कर करना है क्या
हम तो निकलेंगे कब्र से भी,
मिलने आएगी जिस दिन वोह हमसे…

Wednesday, August 22, 2007

यादें

यादों का क्या है...
जब चाहे तब चली आती हैं,
हम तो इन्हें कभी नही बुलाते,
पर क्या करें…

जब भी तनहा होता हूँ,
आकर हमे गले से लगा लेती हैं,
आप तो सोहबत में आये ना कभी,
इन यादों का ही तो सहारा है,
यादों का ही तो भरोसा है,
और ये यादें...
खूबसूरत यादें...
प्यारी यादें...

छू कर करीब से,
अहसास दिलाती हैं,
कुछ उन उनकाही,
उँची बातों की,
जो की कहीँ है भीतर,
इस दिल की गहराइयों में...

छुपी हुई है,
दबी हुई है,
यादें…
प्यारी यादें...
उसकी यादें...

यही तो है हमारी धरोहर
और तो कुछ बचा नही,
एक यही तो है सहारा,
इन यादों का...
मेरी यादें...

हमेशा मेरे साथ,
मेरे पास,
उन अहसासों को जिंदा करती हुई,
उन हसीं पलों को जीवन देती हुई,
याद्दें है
ये ऐसे यादें...

कभी ना होंगी दूर हमसे,
ये यादें।

कहां है

कहां है, कहां है...
कोहरे का वो एक ठंडा सा अहसास,
वो उसका एक धुन्ध्लापन,
वो उसकी एक चाहत.
समाने को सबकुछ अपने आगोश में,
वो उसका प्यार लेने को बेसब्र,
आगोश में अपने सब कुछ,
कहां है, कहां है!...

कोहरे का वो धीरे धीरे बाहों को फैलाना,
सब कुछ अपने दिल में समाना,
साथ ही चोटी चोटी चमकती हीरे जैसे बूंदों,
का एक शृंगार करना,
कोहरे के आगोश में महसूस करना,
उस प्रेम की गर्माहट को,
ठंडे से अहसास के बीच से,
वो गर्माहट का धीरे से झांकना,
छू लेना दिल की गहराइयों को,
वो उसका प्यार,
वो उसका अहसास,
कहां है, कहां है...

उस प्रिये के तलाश में,
उस प्रिये के इंतज़ार में,
बैठे हम सब राह देखते,
जाने कहां है वो निष्ठुर
जाने कहां है वो निर्मोही,
लगता जैसे अपनी प्रियतम के साथ,
लगता जैसे अपनी प्रियतम के आगोश में...

भूल बैठा हम सबको,
भूल गया हमे वो,
भूल गया प्यार को...

राह देखते हम सब उस निष्ठुर की,
अयीगा कब वो हमारे आगोश में,
वो उसका धुन्ध्लापन...

वो उसका कोमल अहसास,
वो उसकी चाहत,
वो उसका प्यार,
वो उसका अआगोश,
कहां है, कहां है, कहां है...

ग़ज़ल

लबों में छाये हुए खामोशी का ,
जमाना गुज़र गया,
खिजा के गम में मौसम,
सुहाना गुजर गया।

आंखों से पीकर किस,
मोड़ पे आ पंहुचा हूँ,
रस्ते में पीछे कहॉ,
म्यखाना गुजर गया।

हर तरफ शोर उठा,
दुहाई सी मच गयी,
जब शमा के करीब से ,
परवाना गुजर गया।

कह कहए लगाए लोगों ने,
मुझे बेहाल देखकर,
कहने लगे देखो,
दीवाना गुजर गया।

दर्द जब भी उठा,
दिल में तेरे नाम का,
आंखों के सामने एक,
अफसाना सा गुजर गया।

इस जिंदगी में अगर,
तुमसे होगा समाना कभी,
समझा लेंगे इस दिल को,
अंजना गुजर गया।

एक अहसास

चांद को देखा,
एक अहसास सा हुआ...
क्यों है चांदनी इतनी शीतल,
एक अहसास सा हुआ...

देती रौशनी उस काली रात में,
सुर्य जब कहीं ग़मगीन हुआ,
अहसास इस बात का,
दिल की गहराइयों तक हुआ...

चांदनी से लिप्त चांद,
जैसे नहाया अभी अभी,
डूब कर उस उजली चांदनी में,
क्यों करता है एक गुमान अपने में,
एक अहसास सा हुआ...

श्वेत ठंडे बर्फ के गोलों सी,
चांदनी का अहसास सा हुआ...

समेटे हुए एक आसमा अपने आप में,
चांद का देती साथ,
उन रात की काली छठा में,
तारों के साथ मदमस्त रंगीनियाँ,
सुर्य भी जब छोड़ गाया,
उस नीले अम्बर को,
चांदनी का साथ उस चांद को,
एक अहसास सा हुआ...

रात की वो नशीले छठा,
सन्नाटा सा छाया चारों ओरे,
छोड़ गए साथ जब,
चांदनी ने उसका साथ तब दिया...

समुन्द्र में उठती लहरें,
निखरती चांदनी की छठा में,
करती एक शौर अजीब सा,
पुकारती जैसे उस चांद को,
choo लेने को बेताब चांद को,
एक अहसास सा हुआ...

छोड़ा साथ जब सभी ने,
चांदनी ने साथ उस वक़्त दिया...
देखता होऊं चन्दा की चांदनी को,
तो ये एक अहसास सा हुआ...

है क्यों इतनी कोमल...
है क्यों इतनी मधुर...
है क्यों इतनी शीतल...
है क्यों इतनी उजली...
है क्यों इतनी पवित्र...
एक अहसास सा हुआ...

चन्दा की चांदनी का,
एक अहसास सा हुआ…

ख्वाब

ख़्वाबों को पूरा करने का ख्वाब है
बन हंसी तेरे लबों पर रहने का ख्वाब है,
सिमट जाऊँगा कभी आगोश में तेरे,
ख्वाब को हकीकत करने का ख्वाब है,
ना बचा सका दामन कोई समेट कर,
जब हाथों में थाम इश्क ने दामन,
बन बारिश की वो ठण्डी बूँदें,
बरस गया इश्क सब कुछ दे जाने को,
क्या करेगा आज़माइश इश्क के कैसे कोई,
तकदीर में लिख दिया जो भी खुदा ने,
ख्वाब भी बन गए जायेंगे हकीकत,
चाह ले तू जो दिल के जोश से,
आएगी ना मौत भी मेरी चौखट पर,
तेरे इश्क में जब तक महफूज़ हूँ,
जिन्दगी में है बाहारें कुछ ऐसे,
ख्वाब भी जैसे सच पर सवार हैं,
सोच भी सकते हैं कैसे जीं ले तुझ बिन,
मार कर मिट चुके तुझमे ऐसे इन्सान हैं,
ख्वाब तो खिल गए है सुर्ख गुलाब से,
बाग्दोरे जीवन कि अब तो तेरे नाम है...

बिखर तो गया हूँ मोतीयों की तरह

बिखर तो गया हूँ मोतीयों की तरह,
फर्श पर पड़ा हूँ उठा ले तू ज़रा,
राह में तेरी मैं गर्दिश में पड़ा,
सूंघता हुआ उस सोंधी मिट्टी का ज़र्रा,
रख कदम तू कभी निकला था जिस राह पर
,कणों ने छुए थे तेरे वो सुन्दर कदम,
लिपट आज मैं इन कणों में सिमट जाऊँगा,
करता महसूस तेरे क़दमों का अहसास वो अनूठा,
इंतज़ार में मैं किसी ऐसे राही के पड़ा,
मिलने अगर कोई तुझसे इस राह से गुज़रा,
बन उसके क़दमों की गर्दिश लिपट जाऊँगा,
इसी बहाने कम से कम तेरे पास तो आऊंगा,
छोड़ तो गया है मुझको तू तनहा कुछ ऐसे,
ताक़त भी नहीं की खुद उठ के मैं चल दूं,
खुशबू के सहारे तेरी मैं क़दमों को रख दूँ,
थामे तेरी वो महकती डोर को उठ बढ़ चलूँ,
मगर हूँ बिखरा पड़ा फर्श पर कुछ मोतियों के जैसा,
कहाँ से लाऊँ वो हौसला उठ चलने का बता तू ज़रा,
गूँथी थी माला जो तूने मोतियों को पिरो कर,
डोर को तोड़ मोतियों को बिखेर तू खुद ही चल दिया,
तेरे खिंचते तारों से गिर मैं फिसलता चला गया,
बता तू ही अब कैसे पिरोउं मैं खुद को ज़रा,
बिखर तो गया हूँ मोतीयों की तरह,
फर्श पर पड़ा हूँ उठा ले तू ज़रा ॥

Monday, August 20, 2007

Realize

Read These Beautiful Lines
To realize
The value of a sister
Ask someone
Who doesn't have one.
To realize
The value of ten years
Ask a newly
Divorced couple.
To realize
The value of four years
Ask a graduate.
To realize
The value of one year
Ask a student who
Has failed a final exam.
To realize
The value of nine months
Ask a mother who gave birth to a still born.
To realize
The value of one month
Ask a mother
who has given birth toA premature baby.
To realize
The value of one week
Ask an editor of a weekly newspaper.
To realize
The value of one hour
Ask the lovers who are waiting to Meet.
To realize
The value of one minute:
Ask a personWho has missed the train, bus or plane
To realize
The value of one-second
Ask a person
Who has survived ! an accident...
To! realize
The value of one millisecond
Ask the person who has won a silver medal
in the Olympics Time waits for no one.
Treasure every moment you have
You will treasure
it even more when you can share it with
someone special.
To realize
The Value of a friend:
Lose one.
Composed By:-
Piratedpizza
Wo Dekho Ek Chartered Accountant Ja Raha Hai ..........

Profile ke bojh tale daba jaa raha hai,
Wo dekho ek Chartered Accountant ja raha hai,
Zindagi se hara hua hai,
Par " Balance sheet Tally " karne se haar nahi manata,
Apne excel sheet ki ek ek line ise rati hui hai,
Par aaj kaun se rang ke moje pehne hain,
Ye nahi janata,
Din par din ek excel file banata ja raha hai
Wo dekho ek Chartered Accountant ja raha hai.

Das hazaar line ki file main error dhoond lete hain lekin,
Majboor dost ki ankhon ki nami dikhayi nahi deti,
PC pe hazaar windows khuli hain,
Par dil ki khidki pe koi dastak sunayi nahi deti,
Satuday-sunday nahata nahi,
Week days ko naha raha hai,
Wo dekho ek Chartered Accountant ja raha है।

Linking karte karte pata hi nahi chala,
"Excel" ki priority kab maa-baap se high ho गयी,
Kitabon main gulab rakhne wala ,
cigerette ke dhuyen main kho gaya,
Dil ki zameen se armaanon ki vidayi ho gayi,
Weekends pe daroo peke jo jashna mana raha hai,
Wo dekho ek Chartered Accountant ja raha hai.

Maze lena ho iske to pooch lo,
"Salary Increment" ki party kab dila rahe ho,
Hansi udana ho to pooch lo,
"Leave" pe kab ja rahe ho?Wo dekho
Leave se laute team-mate ki chocolates kha raha hai,
Wo dekho ek Chartered Accountant ja raha hai.

Kharche badh rahe hain,Baal kam ho rahe hain,
Income Tax ke sitam ho rahe hain,
Lo phir se bus choot gayi,
Auto se aa raha hai,
Wo dekho ek Chartered Accountant ja raha hai.

Pizza gale se nahi utarta,
To "Coke" ke sahare nigal liya jata hai,
Office ki "Thali" dekh munh hai bigadta,
Maa ke hath ka wo khana baar roz yaad ata hai, "
Sprout bhel" bani hai phir bhi,
Free "Evening Snacks" kha raha hai,
Wo dekho ek Chartered Accountant ja raha hai,
Aapne ab tak li hongi bahut si chutikiya,
Chartered Accountant ke jivan ka sach batati ye akhri kuch panktiyan,

Hazaron ki tankhwah wala,
Company ki karodon ki jeb bharta hai,
Chartered Accountant wahi ban sakta hai,
Jo lohe ka jigar rakhta hai,
Hum log jee jee ke marte hain ,
Zindagi hai kuch aisi,
Ek fauj ki naukri,
Doosri Chartered Accountant ki ,
Dono ek jaisi,
Is kavita ka har shabd mere dil ki gehrayi se aa raha hai,
Wo dekho ek Chartered Accountant ja raha hai ..........



Composed By:-
Adhar Kumar Rastogi
चेहरे बदलने का हुनर मुझमैं नहीं ,
दर्द दिल में हो तो हसँने का हुनर मुझमें नहीं,
मैं तो आईना हुँ तुझसे तुझ जैसी ही मैं बात करू,
टूट कर सँवरने का हुनर मुझमैं नहीं ।

चलते चलते थम जाने का हुनर मुझमैं नहीं,
एक बार मिल के छोड जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,
मैं तो दरिया हुँ ,
बेहता ही रहा ,
तुफान से डर जाने का हुनर मुझमैं नहीं ।

सरहदों में बंट जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,
अंधेरों में खो जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,
मैं तो हवा हुँ , महकती ही रह ,
आशिंयाने मैं रह पाने का हुनर मुझमैं नहीं ।

सुन के दर्द और सताने का हुनर मुझमैं नही ,
धर्म के नाम पर खुन बहाने का हुनर मुझमैं नहीं ,
मैं तो इन्सान हुँ ,
इन्सान ही रहूँ ,
सब कुछ भुल जाने का हुनर मुझमैं नहीं ।

औरों के दम पे जगमगाने हुनर मुझमैं नहीं ,
मैं तो दिन में ही दिखुंगा,
रात में दिख पाने का हुनर मुझमैं नहीं ,
मैं तो सूरज हूँ अपनी ही आग से रोशन,
चाँद की तरह रोशनी चुराने का हुनर मुझमैं नहीं ।

सुख में खो जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,
दुख में घबराने का हुनर मुझमैं नहीं ,
मैं तो जिन्दगी हुँ चलती ही रहुँ ,
व़क़्त पर साथ छोड जाने हुनर मुझमैं नहीं ।

i want to say to all my friends....

मिलेगा जहाँ जब कोशिश करोगे ,
चमकेगा आसमा जब आतीश बनोगे,
बस कुछ लम्हे ना बनकर रह जाना तुम यहाँ,
बात तो तब होगी जब किसी की ख़्वाहिश बनोहोता है

असर बातो का ज़माने को झुकने का बहाना दो,
अपने सरफ़रोश इरादो को कामयाबी का ठिकाना दो,
काँपते है जमी और आसमा बस एक तूफ़ान चाहिए,
लोगो की कुछ फ़ार्माइशों पर अपनी फ़तह का फ़साना दो.

तुम्हे ख़ाक करने से तो आग भी डरती है,
फिर छोटी सी मुश्किल क्या मंसूबे लेकर जीती है,
अरे तुम तो उड़ते हो अक्सर उसी आकाश में,
जिसे छुने को अक्सर ये दुनिया तरसती है.